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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विधेयक इस बातकी जाँच करनेके लिए ही पेश किया गया था कि उस समय एशियाई वर्गोके पास जो कागजात थे उनमें उपर्युक्त दोष मौजूद थे अथवा नहीं।

नौ हजार प्रार्थनापत्रोंके बारेमें गवर्नरके भाषणमें यह बात स्वीकार की गई है कि उपनिवेशके लगभग सभी एशियाइयोंने अपनी मर्जीसे पंजीयन करा लिया है।[१] इसलिए मैं मान लेता हूँ कि उपनिवेशमें गत जनवरीमें कुल मिलाकर ९,००० एशियाई थे। उन सबने अपने कागजात दाखिल कर दिये हैं और उन्हींकी बिनापर ७,६०० एशियाई ट्रान्सवालके वैध निवासी सिद्ध किये जा चुके हैं। हकीकत यह है कि शेष अर्जियाँ अभीतक अस्वीकृत नहीं की गई हैं; प्रत्युत उनमें से अधिकांशकी प्रामाणिकता कदाचित् सिद्ध की जा सकेगी। इन अर्जियोंके दावोंपर अभीतक केवल इसीलिए विचार किया जा रहा है कि एक अड़चन आ खड़ी हुई है, जो यह है कि इन एशियाइयोंके पास डचोंके दिये पंजीयन-प्रमाणपत्र हैं और इन प्रमाणपत्रोंको जनरल स्मट्सने उपनिवेशमें निवासका पर्याप्त अधिकारपत्र माननेसे इनकार कर दिया है।

मैं यह भी कह दूँ कि एशियाई पंजीयन द्वारा दिये गये आँकड़ोंके अनुसार १३,००० से ऊपर अनुमतिपत्र जारी किये जा चुके हैं और वे अब चालू हैं। इनमें से, स्वेच्छया पंजीयनके अन्तर्गत ८,५०० व्यक्ति बुलाये गये हैं। इनमें से ५०० को डच पंजीयन प्रमाणपत्रधारी मान लेते हैं और यदि ८,५०० में से ७,००० ने अपना अधिकार प्रमाणित कर दिया है तो क्या श्री डंकन मुझे यह कहने की इजाजत देंगे कि संगठित अवैध प्रवेश हुआ ही नहीं है।

बकाया ४,५०० अनुमतिपत्रोंके सम्बन्ध में ( ये 'बकाया' इसलिए हैं कि ये एशियाई उपनिवेश से बाहर हैं ), मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि इन अनुमतिपत्रोंमें से बहुत ही कम सदोष मिलेंगे।

भारतीय समाजने इस वक्तव्यका खण्डन करनेकी चेष्टा कभी नहीं की है कि एशियाई लोगोंका कुछ अवैध प्रवेश हुआ है। १९०६ में यही कहा गया था और मैं उसे दुहरानेका साहस करता हूँ कि जो प्रमाण प्रस्तुत किये गये थे वे छल-कपटसे थोक प्रवेशके आरोपको सिद्ध करनेके लिए न तब पर्याप्त थे और न अब हैं। शान्ति-रक्षा अध्यादेश इक्के-दुक्के मामलोंको निपटानेके लिए पर्याप्त था। लाजिमी कानून बनानेका कारण और आधार यह मान्यता थी कि एशियाई लोग स्वेच्छासे अपने दावोंकी जाँच न करने देंगे; क्योंकि उन दावोंमें जाल-साजी बहुत ज्यादा है। इसीलिए स्वेच्छया पंजीयनका प्रस्ताव किया गया और इसीलिए मैंने यह बात कही कि स्वेच्छया पंजीयनके फलस्वरूप एशियाई लोगोंपर संगठित अवैध प्रवेशका अनुचित आरोप समाप्त हो चुका है।

[ आपका, आदि,
मो० क० गांधी ]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-७-१९०८
 
  1. गवर्नरने १५ जूनको संसदका अधिवेशन फिर आरम्भ होनेके अवसरपर अपने भाषणमें कहा था: "इस उपनिवेशके ९,०७२ एशियाइयोंने, यानी लगभग सारी एशियाई आबादीने, अपना स्वेच्छया पंजीयन करा लिया है और ७,६१७ एशियाइयोंको अस्थायी पंजीयन प्रमाणपत्र जारी किये जा चुके हैं...।"