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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्योंकि वे शिनाख्तके लिए, परवानेके लिए या किसी अन्य कामके सम्बन्धमें सरकारी अफसरोंके पास कभी न जायेंगे।

आपका, आदि,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-७-१९०८

२०२. पत्र: उपनिवेश सचिवको[१]

[ जोहानिसबर्ग ]
जुलाई ६, १९०८

उपनिवेश-सचिव
प्रिटोरिया
महोदय,

आठ सौसे अधिक ब्रिटिश भारतीयोंकी एक सार्वजनिक सभा[२] कल हमीदिया मस्जिदमें यह विचार करनेके लिए हुई थी कि स्वेच्छया पंजीयन सम्बन्धी प्रार्थनापत्रोंकी वापसीकी दरख्वास्तपर सर्वोच्च न्यायालयके फैसलेसे भारतीयोंकी स्थितिपर क्या प्रभाव पड़ता है। मेरा संघ अब भी सम्मानपूर्वक विश्वास करता है कि ये फार्म वापस किये जा सकते हैं। सार्वजनिक सभामें निर्णय किया गया कि अगले रविवारको स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्रोंको जलानेके लिए एक और सार्वजनिक सभा की जाये, जिससे अधिवासी ब्रिटिश भारतीयों और अन्य लोगोंके दावोंपर सरकार द्वारा विचार न किये जानेकी अवस्थामें हम ऐसे भारतीयोंके साथ खड़े हो सकें और कष्ट भोग सकें। मेरा संघ अत्यन्त उत्सुक है कि उसको ऐसा कड़ा कदम न उठाना पड़े, और इसीलिए वह सरकार से सहायताके लिए एक बार फिर नम्रतापूर्वक प्रार्थना करता है।

मेरा संघ आपको उस भाषणका स्मरण दिलाता है जो आपने समझौतेके तुरन्त बाद रिचमंडमें[३] दिया था, और जिसकी खबर गत ६ फरवरीके 'स्टार' में छपी थी। उस भाषणमें आपने एशियाइयोंको यह कहा बताते हैं: "जबतक देशमें एक भी एशियाई ऐसा है जिसने पंजीयन न कराया हो, तबतक कानून रद न किया जायेगा।" और फिर, जबतक देशमें प्रत्येक भारतीय पंजीयन नहीं करा लेता तबतक कानून रद न किया जायेगा।" इससे प्रकट होता है कि इस कानूनको रद करनेकी एकमात्र शर्त पूर्ण पंजीयन थी। मेरे संघको यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि उपनिवेशके लगभग प्रत्येक भारतीयने समझौतेके अनुसार स्वेच्छासे

 
  1. यह इंडियन ओपिनियनमें "अन्तिम चेतावनी" शीर्षकसे छपा था और उस संक्षिप्त लेखका भाग था, जिसे रिचने अपने २२ जुलाई १९०८ के पत्रके साथ उपनिवेश कार्यालयको भेजा था।
  2. इस सभामें सोराबजी शापुरजीने भी भाषण दिया था और पंजीयन अधिनियमके आगे न झुकनेका दृढ़ निश्चय घोषित किया था। उन्होंने शिक्षित व्यक्तिके रूपमें ट्रान्सवालमें प्रवेशके अधिकारका दावा भी किया था।
  3. फरवरी ६, १९०८ को।