पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/३७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३५
पत्र: उपनिवेश सचिवको

प्रार्थनापत्र दे दिया है। किन्तु अब मेरे संघको मालूम हुआ है कि सरकार इसे रद करनेके बदले भारतीयोंको निम्न बातें माननेके लिए कहती हैं:

(क) यह कि जिन ब्रिटिश भारतीयोंके पास डच पंजीयन प्रमाणपत्र हैं, जिनके लिए उन्होंने ३ या २५ पौंड दिये हैं, वे चाहे उपनिवेशमें हों या बाहर हों, निषिद्ध प्रवासी हो जायें।

(ख) यह कि युद्धसे पहलेके भारतीय शरणार्थी, जो अभी ट्रान्सवालमें नहीं लौटे हैं, निषिद्ध प्रवासी हो जायें।

(ग) यह कि जो स्वेच्छया प्रार्थनापत्र इस समय एशियाई पंजीयकके विचाराधीन हैं, उनका अन्तिम निर्णय पंजीयक करे और उनके सम्बन्धमें सर्वोच्च न्यायालयमें अपीलका अधिकार न हो।

(घ) यह कि वे ब्रिटिश भारतीय भी, जो प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत कड़ी परीक्षा पास कर सकते हैं, निषिद्ध प्रवासी माने जायें।

मेरा संघ आदरपूर्वक यह निवेदन करता है कि ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय समाजसे कुछ लोगोंको, जिनकी ओरसे समाज कुछ प्रभावकारी रूपमें बोल भी नहीं सकता है, अधिकारोंसे वंचित करनेकी स्वीकृति देनेके लिए कहना अत्यन्त अनुचित है। सरकार कोई कानून बना दे और उस समाजसे न पूछे जो उससे प्रभावित होता है तो यह एक बात होगी और उस समाजको ऐसे कानूनपर, जिससे उसके एक भागकी स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगता हो, मंजूरी देनेके लिए कहना दूसरी बात होगी।

(क) और (ख) के सम्बन्धमें मेरा संघ यह कहने का साहस करता है कि उनके दावे विधिवत् विचार किये बिना कभी नामंजूर नहीं किये गये, जैसा अब प्रस्ताव है; बल्कि युद्धसे पहलेके शरणार्थियोंके मामलोंपर थोड़ा-बहुत विचार किया गया है और उनको वापसीके अनुमतिपत्र दिये गये हैं। ब्रिटेनका अधिकार होनेके बाद जिम्मेदार अधिकारियोंने बार-बार घोषणाएँ की हैं जिनमें यह बिलकुल साफ कर दिया गया है कि युद्धसे पहलेके एशियाई निवासियोंके अधिवास-सम्बन्धी अधिकारोंकी रक्षा की जायेगी। ऐसे लोगोंको अब निषिद्ध प्रवासी मानने की इच्छाके कारण एक नई और ब्रिटिश भारतीयोंके लिए दुःखजनक स्थिति उत्पन्न करनेका प्रयत्न किया जाता है। मेरा संघ इस बातके लिए बिलकुल तैयार है कि पंजीयन प्रमाणपत्रोंका कानूनी स्वामित्व सिद्ध करनेका भार उन लोगोंपर डाला जाये जिनके पास वे हैं; और यह कि युद्धसे पहलेके उन निवासियोंके, जिनके पास पंजीयन प्रमाणपत्र नहीं हैं, अधिकार एक निश्चित अवधिके---जैसे दो वर्षके---निवास तक सीमित कर दिये जायें और यह निवास न्यायालयके सम्मुख सन्तोषप्रद रूपसे सिद्ध किया जाये; किन्तु सर्वोच्च न्यायालयमें अपीलका अधिकार हर हालतमें रहे जिससे विभिन्न छोटे न्यायालयोंके निर्णयोंमें एकरूपता रहे। मेरा संघ इसके अलावा सम्भावित झूठी कार्रवाइयोंको रोकनेके लिए एक उचित अवधि स्वीकार करनेके लिए तैयार है जिसमें ये सब बाकी दावे पेश कर दिये जायें। मेरा संघ जानता है कि कमसे-कम एक भारतीय उपनिवेशसे बाहर है जिसने १८८५ में अपना अधिवास-अधिकार, संशोधन से पहले १८८५ के कानून ३ के अनुसार खरीदनेके लिए २५ पौंडकी रकम दी थी, और जिसके पास यूरोपीय प्रमाणपत्र हैं एवं जिसे अभीतक वापस आनेकी अनुमति नहीं दी गई है। ऐसे कई मामले हैं, यद्यपि वे २५ पौंड नहीं, ३ पौंड देनेके हैं। मेरा संघ आपका ध्यान १८८५ के कानून ३ की निम्न धाराकी ओर आकर्षित करता