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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है जिससे स्पष्ट रूपसे प्रकट होता है कि ३ पौंड शुल्क इसलिए लगाया गया था, ताकि शुल्कदाता देशमें बसनेका अधिकारी हो सके:

जो गणराज्यमें कोई व्यापार करनेके लिए या अन्यथा बसते हैं, उनको अपने नाम सरकार द्वारा निर्धारित एक फार्मके अनुसार एक पंजिकामें पंजीकृत कराने होंगे। यह पंजिका इसी उद्देश्यसे विभिन्न जिलोंमें न्यायाधीशोंके पास अलग रखी रहेगी। यह पंजीयन आनेके दिनसे आठ दिनके भीतर किया जायेगा, और उसके पश्चात् २५ पौंड (बादमें में ३ पौंड) की रकम दी जायेगी।

(ग) के सम्बन्धमें उन भारतीयोंको वंचित करना स्पष्टतः अनुचित होगा जिन्होंने स्वेच्छया पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दे दिये हैं और यह अधिकार भी माँगा है कि जो लोग वापस आनेके अधिकारी हैं उनके दावोंकी अदालती जाँच जब हो तब प्राथियोंके दावोंकी अदालती जाँच भी की जाये। मेरे संघको एक समान अधिकार रखनेवाले भारतीयोंके साथ व्यवहारमें ऐसा अन्तर करनेका कोई कारण नहीं दिखाई देता।

(घ) के सम्बन्धमें मेरा संघ इस प्रस्तावकी असाधारणता अनुभव किये बिना नहीं रह सकता कि ट्रान्सवालवासी भारतीय उच्च शिक्षा-प्राप्त भारतीयों और पेशेवर लोगोंको, जिनसे सहायता प्राप्त करनेके लिए ब्रिटिश भारतीय सदा इच्छुक रहते हैं, अधिकार-वंचित करनेके सम्बन्धमें अपनी सहमति दें। मेरा संघ सम्मानपूर्वक कहता है कि प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमकी व्याख्याके अनुसार यूरोपीय शिक्षा-प्राप्त भारतीयोंको देशमें प्रवेशका अधिकार रहता है, और श्री सोराबजीपर, जो इस व्याख्याकी परीक्षाके लिए ही देशमें प्रविष्ट हुए हैं, अब पंजीयन प्रमाणपत्र दिखानेमें असमर्थ होनेपर मुकदमा चलाया जानेवाला है। इस तथ्यसे मेरे संघका कथन पुष्ट होता है और यह प्रकट होता है कि सरकार प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमकी अपनी व्याख्या से मुकर गई है। मेरे संघका खयाल है कि जहाँतक यूरोपीय उपनिवेशियोंका सम्बन्ध है, इस मामलेमें कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं आता, जबकि ब्रिटिश भारतीयोंके लिए यह गहरी पोषित भावनाका प्रश्न है। अमली तौरपर, शिक्षित भारतीयोंमें से भी बहुत बड़ी संख्या इस परीक्षाकी कड़ाईके कारण उपनिवेशमें न आ सकेगी। और मेरा संघ ऐसी किसी उचित कड़ाईपर वहाँतक आपत्ति नहीं करता, जहाँतक ठीक ढंगकी शिक्षा जितनी भारतीयोंमें उतनी ही यूरोपीयोंमें देखी जाती है और मान्य की जाती है। नेटालमें, जहाँ यह परीक्षा कदापि ट्रान्सवालके बराबर कड़ी नहीं है, पिछली प्रवासी रिपोर्टके अनुसार नई परीक्षाके अन्तर्गत केवल थोड़े-से भारतीय[१] प्रविष्ट हुए हैं।[२] आस्ट्रेलियामें, जहाँ ऐसी ही शिक्षा-सम्बन्धी परीक्षा है, एशियाई प्रवासियोंकी समस्या सफलतापूर्वक हल की जा चुकी है। इसलिए मेरा संघ यह विश्वास करनेका साहस करता है कि ट्रान्सवाल अपवाद न होगा और सरकार इस मामलेमें ब्रिटिश भारतीयोंकी स्वाभाविक भावनाओंको कृपा करके चोट न पहुँचायेगी।

मेरा संघ, अन्तमें, सम्मानपूर्वक विश्वास करता है कि सरकार उक्त आवेदनपर गम्भीरतासे विचार करेगी और एशियाई प्रश्नको, जहाँतक वह एशियाई कानून संशोधन-विधेयक द्वारा प्रभावित होता है, अन्तिम रूपसे समाप्त कर देगी और इस प्रकार समझौतेको अपनी ओरसे पूरा ही नहीं करेगी, बल्कि उपनिवेशके वैध एशियाई निवासियोंको विश्राम और

 
  1. इंडिया ऑफिसके सूत्रोंके अनुसार उनकी संख्या ८१ थी।
  2. देखिए परिशिष्ट ४, "नेटाल प्रवासी-विभागका विवरण"।