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सोराबजी शापुरजीका मुकदमा---१

शान्ति देगी जिसका अधिकार वे अभी हालके संकटमें अपने आचरणसे प्राप्त कर चुके हैं। और अन्तिम किन्तु उतनी ही महत्वपूर्ण बात ब्रिटिश भारतीयोंको उस कदमसे बचाना है जिसके लिए वे सरकारका निर्णय विपरीत होने की अवस्थामें ऊपर बताये अनुसार वचनबद्ध हैं।

आपका, आदि,
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-७-१९०८

इंडिया ऑफिस: ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, २८९६/०८ भी देखिए।

२०३. सोराबजी शापुरजीका मुकदमा--१

[ जोहानिसबर्ग
जुलाई ८, १९०८ ]

सबसे पहले सोराबजीके मुकदमेकी पुकार हुई। उनपर सन् १९०७ के अधिनियम २ के अन्तर्गत बिना अनुमतिपत्रके उपनिवेशमें उपस्थित रहनेका अभियोग लगाया गया था।

न्यायाधीश: अभियोगके बारेमें आपका कहना क्या है?

अभियुक्त: [स्पष्ट आवाजमें] मैं निर्दोष हूँ।

सुपरिटेंडेंट वरनॉनने बताया कि मैंने अभियुक्तको इस माहकी ४ तारीखको[१] गिरफ्तार किया था। मैंने उससे अधिनियमके[२] अन्तर्गत पंजीयन प्रमाणपत्र, अथवा उपनिवेशमें प्रवेश या निवास करनेका अधिकारपत्र दिखानेको कहा। उसने जवाब दिया: "मेरे पास अधिकारपत्र या पंजीयन प्रमाणपत्र नहीं है। तब मैंने उसपर अधिनियमकी धारा ८ की उपधारा ३ के अन्तर्गत अभियोग लगाया। अभियुक्तने २४ जूनको शामके ६ बजकर १ मिनटपर उपनिवेशमें प्रवेश किया था। मैं उसकी गिरफ्तारीके दिन तक उसे रोज देखता था।

[सुपरिटेंडेंट वरनॉन:] (श्री गांधीकी जिरहके उत्तरमें) अभियुक्त अंग्रेजी भाषा जानता है, और इतनी जानता है कि मैंने उससे जो कुछ कहा, उसे वह समझ सका।

[गांधीजी:] और इतनी पर्याप्त जानता है कि वह प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमकी आवश्यकता पूरी कर सके?

[वरनॉन:] इससे मेरा कोई वास्ता नहीं। मैं कोई राय नहीं दे सकता।

 
  1. ट्रान्सवाल लीडरमें मुकदमेकी कार्यवाही जिस रूपमें छपी उसमें ३ जुलाई १९०८ की तारीख है। इंडियन ओपिनियनवाले पाठमें तारीख नहीं दी गई है।
  2. १९०७ का अधिनियम २।
८-२२