क्या आप स्वीकार करेंगे कि उनकी शैक्षणिक योग्यताएँ पर्याप्त हैं?
मैं इस सम्बन्धमें कुछ नहीं जानता।
क्या आप स्वीकार करेंगे कि उनके पास पर्याप्त साधन हैं?
मैं इस सम्बन्धमें भी कुछ नहीं जानता। इस अभियोगका उससे कोई सम्बन्ध नहीं है।
क्या आपने किसी अन्य एशियाईको जाने दिया है?
हाँ, जाने दिया है।
बिना पूछताछ किये?
नहीं, बिना पूछताछ किये नहीं; उन्हें [ अभियुक्तको ] बिना पूछताछ नहीं जाने दिया।[१]
उनके साथ क्या किया गया?
मैं कहनेमें असमर्थ हूँ। मैं इस प्रश्नका उत्तर देनेसे कतई इनकार करता हूँ। में कहता हूँ कि समय आनेपर आपको मालूम हो जायेगा।
उन्हें क्यों जाने दिया गया?
मैं इसका जवाब नहीं दूँगा। वह कानूनके विरुद्ध यहाँ आया, और फलस्वरूप आज वह यहाँ अभियुक्तके रूपमें उपस्थित है।
न्यायाधीशने फिर हस्तक्षेप किया और कहा, श्री गांधी प्रवासी अधिनियमका जिक्र कर रहे हैं जबकि अभियुक्तपर एशियाई अधिनियमके अन्तर्गत अभियोग है।
श्री गांधी: आप मुझे बड़ी अड़चनकी स्थितिमें डाल रहे हैं। आपने मेरा पक्ष नहीं सुना है। मुख्य प्रवासी अधिकारीकी हैसियतसे क्या आप किसी ऐसे एशियाईको जाने देंगे जिसके पास प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत अपेक्षित सारी शैक्षणिक योग्यताएँ हों?
कदापि नहीं।
क्यों नहीं?
वह निषिद्ध प्रवासी है।[२]
इसके बाद सरकारी पक्षको सुनवाई समाप्त हो गई।
एक कानूनी मुद्दा
धारा ८ को उपधारा ३ के अन्तर्गत ही, जिसके अनुसार अभियुक्तपर अभियोग लगाया गया था, श्री गांधीने अपने मुवक्किलकी रिहाईकी माँग इस आधारपर की कि उप-धारामें कहा गया है: कोई एशियाई जो 'गजट' [ आदि ] में प्रकाशित होनेवाली तारीखके बाद उपनिवेशमें पाया जाये। इस नोटिसका प्रकाशन सिद्ध नहीं किया गया, और अदालतके पास जो 'गजट' था उसमें वह नोटिस नहीं था।[३]
- ↑ इस मुकदमेकी गांधीजी द्वारा गुजरातीमें लिखी गई रिपोर्ट (देखिए इंडियन ओपिनियन, १८-७-१९०८) के अनुसार श्री चैमनेने स्वीकार किया था कि शिनाख्त पक्की करनेके लिए उन्होंने अभियुक्तके प्रवेश करते समय उसकी जाँच की थी।
- ↑ १८-७-१९०८के इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित गुजराती रिपोर्टके अनुसार, और जिरह करनेपर चैमनेने स्वीकार किया कि उन्होंने इस "निषिद्ध प्रवासी" को प्रवेश करनेकी अनुमति दी थी।
- ↑ गुजराती रिपोर्टके अनुसार गांधीजीने यह तर्क भी रखा कि पंजीयनकी अवधि समाप्त हो गई है, यह सिद्ध करनेके लिए मौखिक प्रमाण प्रर्याप्त नहीं है।