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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

अपनी प्रार्थना वापस लेनेका हक है। प्रार्थना जिस प्रार्थनापत्रमें की गई हो वह वापस नहीं दिया जायेगा। यदि प्रार्थना वापस लेनी हो, तो न्यायाधीशने कहा कि प्रमाणपत्र नहीं लेने चाहिए। सरकार अनुमतिपत्र तथा पुराने पंजीयन प्रमाणपत्र लौटानेके लिए बाध्य है। किन्तु उन्होंने निर्णय दिया कि चूँकि स्वेच्छया पंजीयनके प्रार्थनापत्रोंकी वापसीके लिए ही मुकदमा चलाया गया है, इसलिए उसका खर्च भी भारतीय समाज दे। श्री स्मट्सने हलफिया बयान दिया कि उन्होंने कानून रद करनेका वचन दिया ही नहीं। श्री चैमनेने भी वैसा ही हल-फिया बयान दिया। श्री वॉर्डने बहुत प्रयत्न किया और बहुत-सी अच्छी-अच्छी दलीलें दीं, किन्तु न्यायाधीशके मनमें यह बात बैठी हुई थी कि प्रार्थनापत्र तो पत्र ही माना जायेगा।

ऐसे परिणामसे बहुत-से भारतीयोंको निराशा हुई है। सत्याग्रहीको निराश होनेका कोई कारण नहीं है। सत्याग्रहीकी अन्तिम अपील-अदालत खुदा है, और उसमें कोई भी झूठी गवाही काम नहीं दे सकती। इसके अतिरिक्त प्रार्थनापत्र वापस माँगनेका हेतु यह था कि हम जल्दी जेल जा सकें। उस हेतुको पंजीयन प्रमाणपत्र जलाकर पूरा करना है। इस काममें कुछ कठिनाई प्रतीत होगी, फिर भी यह काम आसान है। समझदार समझ सकेंगे कि प्रार्थनापत्र वापस लेनेकी अपेक्षा पंजीयन प्रमाणपत्र जलाना अधिक अच्छा है।

कानून तो रद हुआ जैसा ही जान पड़ता है। जनरल स्मट्सने ६ फरवरीको जोहानिसबर्गमें भाषण[१] दिया था। उसमें उन्होंने कहा था: "मैंने एशियाइयोंको सूचित किया है कि यदि वे सब स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र ले लेंगे तो कानून रद हो जायेगा। वे जबतक स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र न लेंगे, तबतक कानून रद नहीं किया जायेगा।" कानूनको रद करनेका वचन इससे अधिक स्पष्ट शब्दोंमें नहीं दिया जा सकता।

जिस दिन सर्वोच्च न्यायालयने अपना निर्णय दिया, उसके दूसरे दिन [श्री स्मट्सका] श्री गांधीके साथ समस्त पत्र-व्यवहार अखबारोंमें प्रकाशित किया गया और उसके साथ-साथ श्री गांधीने २ जुलाईके अखबारोंमें पत्र[२] लिखा। इस पत्रका उत्तर [अभीतक] किसीने नहीं दिया है।

गोरोंसे प्राप्त सहायता

इस बीच उन गोरोंने[३], जो हमारी मदद करते रहे हैं, फिर [समझौतेके] प्रयत्न आरम्भ कर दिये हैं। अब जनरल स्मट्स कहते हैं कि वे तीन पौंडी प्रमाणपत्रधारी शरणार्थियोंका हक कबूल करनेके लिए तैयार हैं। वे श्री चैमनके निर्णयोंके विरुद्ध अपीलकी इजाजत देनेके लिए भी तैयार हैं। वे भारतीयोंसे ऐसा वचन लेना चाहते हैं जिससे [उपनिवेशमें] शिक्षित लोग न आ सकें। भारतीय उनकी यह बात मानना नहीं चाहते। रविवारको इसीलिए सभा बुलाई गई थी। लगभग ८०० लोग हमीदिया मस्जिदमें इकट्ठे हुए थे। इस सभामें श्री ईसप मियाँ, श्री इमाम अब्दुल कादिर, श्री कामा, श्री गुलाब भाई, श्री काछलिया, श्री पोलक, श्री गांधी, श्री खुरशेदजी आदि व्यक्तियोंने भाषण किये[४] और अन्तमें निश्चय हुआ कि अगले रविवारको बड़ी सभाकी जाये और उसमें [पंजीयन प्रमाणपत्र जलाये जायें] ।

 
  1. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३३४-३७।
  2. देखिए "पत्र: अखबारोंको", पृष्ठ ३२५-२६।
  3. कार्टराइट, हॉस्केन और चैपलिन।
  4. जुलाई ५ की सार्वजनिक सभा।