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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सामने फिर पेश करनेसे पहले पूरे आठ दिनका समय देना उचित था। यदि अभियुक्तके लिए दोष-मुक्तिका कोई मूल्य है, तो उसे एक हफ्ते तक और अदालतमें पेश होनेके लिए नहीं बुलाना चाहिए। मेरे इस कथनका अर्थ एक क्षणके लिए भी यह नहीं है कि इस मामलेके खयालसे उन्हें पूरे आठ दिनोंकी आवश्यकता है, किन्तु फिर भी यह कानूनी बचाव तो है ही और उसको छोड़ना मेरे लिए उचित नहीं है। मेरी माँग यह है कि कानूनके मुताबिक अभियुक्तको विगत कालसे नया अवसर देना उचित था। किन्तु वास्तविकता यह है कि वह अदालतसे ही निर्दयतापूर्वक ले जाया गया। उसके साथ असभ्यताका व्यवहार किया गया और उसे यह अवसर भी नहीं दिया गया कि यदि वह चाहता तो कलके दिन उपनिवेशसे चला जाता।

न्यायाधीशने इस तर्कको अमान्य कर दिया और कहा कि वे इसको अंकित कर रखेंगे। सुपरिटेंडेंट वरनॉनने गिरफ्तारीके विषयमें औपचारिक गवाही दी। उन्होंने सरकारी 'गजट' में प्रकाशित नोटिसें पेश कीं, जिनमें उपनिवेश-सचिवको ये सरकारी विज्ञप्तियाँ थीं कि कानूनके अन्तर्गत पंजीयनकी अवधि ३१ अक्तूबर १९०७ को और उसके बाद बढ़ाई हुई अवधि ३० नवम्बर १९०७ को समाप्त होती है।

जिरह

[ गवाहने कहा : ] कल जब अभियुक्त बरी किया गया तब मैं अदालतमें था। मैंने अभियुक्तको इशारेसे बाहर बुलाया था और अदालतके बाहर गिरफ्तार किया था। यह सच है कि अभियुक्तको बरी होने और दुबारा अदालतमें पेश किये जानेके बीच अधिक समय नहीं मिला।

मॉटफोर्ड चैमनेने कहा, मैं एशियाई पंजीयन अधिकारी हूँ। अभियुक्तने १९०७ के अधिनियम २ के अन्तर्गत पंजीयन प्रमाणपत्रके लिए अर्जी नहीं दी है और उसे ऐसा प्रमाणपत्र नहीं दिया गया है। अधिनियमकी धाराओंके बाहर पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दिया गया था, किन्तु मैंने विचार करनेपर देखा कि अभियुक्त पंजीयनका अधिकारी नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि अभियुक्त प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत ऐसे पंजीयन प्रमाणपत्र पानेका अधिकारी नहीं है।

श्री गांधीने इस आधारपर इस बयानका विरोध किया कि धाराकी व्याख्याके विषयमें गवाहका अभिमत कुछ मानी नहीं रखता; क्योंकि वह न्यायाधिकारी नहीं है, बल्कि केवल एक प्रशासनाधिकारी है। न्यायाधीशने इस आपत्तिको मान्य किया।

जिरहमें गवाहने कहा कि उन्होंने अभियुक्तसे उसकी शिक्षा-सम्बन्धी योग्यताके बारेमें पूछताछ नहीं की।

इसके बाद इस्तगासेकी दलीलें खत्म हो गई।

श्री गांधीने तुरन्त अभियुक्तको बरी करनेकी प्रार्थना की, क्योंकि यद्यपि नोटिसें सिद्ध कर दी गई थीं, किन्तु नियमित नोटिस सिद्ध नहीं की गई थी। अदालतके सामने इस नोटिसको सिद्ध करनेकी आवश्यकता थी, जिसमें विज्ञापित किया गया हो कि जो व्यक्ति अमुक तारीखके बाद उपनिवेशमें मिलेगा उसे पंजीयन प्रमाणपत्र पेश करना पड़ेगा। जो नोटिसें अदालतमें पेश की गई हैं उनमें केवल पंजीयनके प्रार्थनापत्रोंका उल्लेख है; इस मामलेसे