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सोराबजी शापुरजीका मुकदमा---२

उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। आखिर ३० नवम्बर निकल चुका है और मेरे मुवक्किलने पंजीयनके लिए कभी प्रार्थनापत्र नहीं दिया है। कानूनकी जिस धाराके अन्तर्गत यह आरोप लगाया गया है उसीमें उस नोटिसका विधान है जिसके द्वारा पुलिसको पंजीयन प्रमाणपत्र माँगनेका अधिकार प्राप्त होता है और केवल इस नोटिसके अन्तर्गत ही पंजीयन प्रमाणपत्र माँगा जा सकता है। यह नोटिस सिद्ध नहीं की गई है।

इसपर एक लम्बी बहस हुई, जिसके फलस्वरूप श्री गांधीने सम्बन्धित-नोटिस पेश की। उन्होंने कहा कि मैं अभियुक्तपर तीसरा मुकदमा चलनेके सम्बन्धमें इस हदतक सहायता करना चाहता हूँ, लेकिन वर्तमान मुकदमेके सम्बन्धमें नहीं; क्योंकि मैं मानता हूँ कि राज्यके लिए इस मामलेमें सजा कराना सम्भव नहीं है। उन्होंने नोटिस पढ़ी। उसमें कहा गया था कि सरकारने ३० नवम्बर १९०७ ऐसी अन्तिम तिथि निर्धारित की है जिसके बाद १६ वर्षकी अवस्थासे ऊपरका कोई एशियाई यदि उपनिवेशमें मिलेगा और अपना पंजीयन प्रमाणपत्र जिसपर उसका वैध अधिकार हो, किसी उचित रूपसे अधिकार दिये गये व्यक्तिके माँगनेपर प्रस्तुत करनेमें असमर्थ रहेगा तो वह गिरफ्तार किया जा सकता है और उसके विरुद्ध कानूनके अनुसार कार्रवाई की जा सकती है। उन्होंने कहा कि यह सूचना कभी पेश नहीं की गई है।

न्यायाधीश: प्रश्न यह है कि क्या गज़ट पेश करना स्वतः पर्याप्त सूचना नहीं है?

श्री गांधीने कहा कि मुझे यह बात बहुत खटकती है कि मैंने अपने तर्ककी सत्यता सिद्ध कर दी है इसके बाद भी इस तरहका तर्क दिया जाता है। मेरा तर्क अब भी यही है कि इस्तगासेकी ओरसे जो दो नोटिसें पेश की गई हैं वे इस मामलेमें लागू नहीं होतीं। इसमें मेरा दोष नहीं है कि मैंने इस मामलेमें बहुत बहस की है। राज्यने सम्बन्धित नोटिस पेश नहीं की है और न अभियोगपत्रमें ही उसका उल्लेख किया गया है।

इसके बाद श्री जॉर्डनने अदालतको भोजनके लिए स्थगित कर दिया और सूचित किया कि वे फिर अदालत लगनेपर अपना फैसला सुनायेंगे।

जब अदालत फिर शुरू हुई तो सरकारी वकीलने कहा कि जिस 'गज़ट' में वह नोटिस है उसे अदालतमें पेश करना नितान्त आवश्यक जान पड़ता है। श्री गांधीने एक विशुद्ध प्राविधिक मुद्देका फायदा उठाया है और अपनी दृष्टिसे उन्होंने ठीक ही किया है। सरकारी वकीलने न्यायाधीश महोदयसे प्रार्थना की कि उनको भी एक विशुद्ध प्राविधिक मुद्देका फायदा उठानेका मौका दिया जाये। उन्होंने न्यायाधीशसे यह मान्य करनेकी प्रार्थना की कि 'गज़ट' पेश करना और उसमेंसे श्री गांधी द्वारा नोटिसोंको पढ़ लेना इस मुकदमेके उद्देश्यसे उनका पर्याप्त प्रकाशन है।

उत्तरमें श्री गांधीने कहा कि उन्होंने 'गज़ट' पेश नहीं किया है। नोटिस कतई पेश नहीं की गई है। उन्होंने उसको केवल उसी तरह पेश किया है जिस तरह वे कानूनकी किसी किताबको, अदालतको भरोसा दिलाने के लिए, इस दृष्टिसे पेश करते कि उनकी स्थिति ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसके बिना वे अपनी बात समझानेमें असमर्थ हैं। उन्हें अदालतकी मदद करनेके बदलेमें सजा देना अनुचित होगा। वास्तवमें जहाँतक गवाहीका ताल्लुक है कानून द्वारा विहित नोटिस कानूनको दृष्टिसे अदालतकी मान्यतामें नहीं आती।