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२१४. पत्र: ए० कार्टराइटको

[ जोहानिसबर्ग ]
जुलाई ११, १९०८

प्रिय श्री कार्टराइट,

मैं अपने वचनके अनुसार प्रश्न भेज रहा हूँ।[१] मैं आगे और प्रश्न बिलकुल तैयार नहीं करूँगा। आपसे विदाई लेनेके बाद मैं श्री हॉस्केनसे मिला। श्री हॉस्केनने भी जनरल स्मट्ससे मिलने का वचन दिया है, क्योंकि श्री हॉस्केनको लिखे गये एक पत्रमें कहा गया है कि जिन लोगोंने स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र [ लिये ][२] उनके प्रमाणपत्र अधिनियमके अन्तर्गत वैध नहीं किये जायेंगे। यह पत्र जनरल स्मट्सने अपने हाथसे लिखा है, इसलिए इसमें भ्रमकी गुंजाइश नहीं हो सकती। फिर भी, शायद आपको और श्री हॉस्केनको---दोनोंको---सोमवारको निश्चित सूचना मिल सकेगी। यदि आपको सूचना मिल जाये तो क्या मैं आपसे कृपापूर्वक टेलीफोन करनेकी प्रार्थना कर सकता हूँ? मेरा नम्बर १६३५ है।

आपका सच्चा,

[ संलग्न ]
श्री ए० कार्टराइट
जोहानिसबर्ग

[ संलग्न ]

एशियाई पंजीयन अधिनियमके सम्बन्धमें

प्रश्नोंका मसविदा

[ जुलाई ११, १९०८ ]

१. समझौतेके बारेमें जेलसे लिखे गये पत्रको अलग पढ़नेसे मालूम होता है कि अधिनियम उन लोगोंपर लागू नहीं होगा, जिन्होंने अपना स्वेच्छया पंजीयन कराया है। तब उस परिपत्रका[३], जो श्री चैमने द्वारा इसी ७ तारीखको नगरपालिकाओंके नाम भेजा गया है और जो 'लीडर' में छपा है, क्या अर्थ है?

२. क्या इस अफवाहमें कोई सचाई है कि सरकार उन लोगोंका अधिवास-अधिकार स्वीकार करनेके लिए तैयार है, जिनके पास वैध ३ पौंडी पंजीयन प्रमाणपत्र हैं, फिर वे चाहे उपनिवेशके भीतर हों या बाहर हों और ऐसे शरणार्थी, जिनके पास प्रमाणपत्र तो नहीं हैं, किन्तु जो अपना युद्धसे पूर्वका यहाँका अधिवास सिद्ध कर सकते हैं।

 
  1. देखिए संलग्न कागज।
  2. अस्पष्ट।
  3. देखिए पृष्ठ ३४६-४७।