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पत्र: कार्टराइटको

३. इधर बराबर कहा जा रहा है कि सरकार उन लोगोंको सर्वोच्च न्यायालयमें अपील करनेका अधिकार देने को तैयार हैं जिनके स्वेच्छया पंजीयनके प्रार्थनापत्र श्री चैमनेने नामंजूर कर दिये हैं। क्या इस बातमें कोई सचाई है?

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल ( एस० एन० ४८३५ ओर ४८३६ ) से।

२१५. पत्र: ए० कार्टराइटको[१]

[ जोहानिसबर्ग ]
जुलाई १४, १९०८

प्रिय श्री कार्टराइट,

आज सुबह टेलीफोनपर मेरी आपसे जो बातचीत हुई उससे मैंने जो-कुछ समझा है, वह निम्नलिखित है। जनरल स्मट्स ३ पौंडी डच पंजीयन प्रमाणपत्रोंकी वैधता स्वीकार करनेके लिए राजी हैं, बशर्ते कि ऐसे प्रमाणपत्रोंके वास्तविक स्वामित्वको सिद्ध करनेके लिए कोई प्रमाण दिया जाये, और यथासम्भव यह प्रमाण यूरोपीय होना चाहिए। जनरल स्मट्स सोचते हैं कि शायद १५,००० पंजीयन प्रमाणपत्र होंगे। उनके प्रस्तुत कर दिये जानेसे ही उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस मामलेपर मैंने हमेशा यह कहा है कि स्वामित्वको सिद्ध करनेका भार प्रमाणपत्र पेश करनेवाले व्यक्तिपर होना चाहिए। यदि पंजीयक उससे सन्तुष्ट नहीं होता तो कानूनी अदालतमें जाकर ऐसा प्रमाण पेश करना पड़ेगा जिससे अदालत सन्तुष्ट हो सके। यही बात उन लोगोंपर भी लागू होगी जिनके पास पंजीयन-प्रमाणपत्र नहीं है, किन्तु जो वैध और प्रतिष्ठित शरणार्थी हैं। हर मामलेमें यूरोपीय प्रमाण देना असम्भव है। मुझे पूरा इत्मीनान है कि बाहर १५,०००[२] पंजीयन प्रमाणपत्र नहीं हैं। यदि हों, तो भी इस तरहकी बाढ़को रोकनेके लिए जनरल स्मट्स नया विधान बनानेको स्वतन्त्र होंगे। जिनके पास प्रमाणपत्र नहीं हैं उन शरणार्थियोंको तथा जिनके पास प्रमाणपत्र हैं उन्हें मिलाकर भी मेरी समझमें बाहर एक हजारसे अधिक प्रवासी नहीं हो सकते। खीरका स्वाद तो खानेपर ही मिलेगा। मैंने सुझाव दिया है कि एक सीमित अवधि निर्धारित कर दी जाये जिसके अन्दर इस प्रकारके सब प्रार्थनापत्र दिये जायें, ताकि इस सम्बन्धमें तनिक भी कठिनाई न हो। ऐसे किन्हीं व्यक्तियोंसे सम्बन्धित अपीलका अधिकार मजिस्ट्रेटकी अदालत तक सीमित है...[३]। मेरी जनरल स्मट्ससे बातचीत हुई थी...[४]वैसा ही बरताव[५] हिन्दू, मुसलमान, ईसाई...[६]

अब मैं इस प्रश्नपर आता हूँ...।[७] मुद्दा जहाँतक मैं समझ सकता हूँ, सरकारके दृष्टिकोणसे सर्वथा महत्त्वहीन है; किन्तु भारतीयोंके दृष्टिकोणसे यह सर्वोपरि महत्त्वका

 
  1. यह पत्र कई स्थानोंमें फटा-फटा और अस्पष्ट है।
  2. मूलमें यह संख्या १५,०० है जो गलत जान पड़ती है।
  3. यहाँ मूलमें एक शब्द अस्पष्ट है
  4. यहाँ एक पूरी पंक्ति अस्पष्ट है।
  5. और
  6. इन स्थानोंमें कुछ शब्द लुप्त हो गये हैं।
  7. यहाँ आधी पंक्ति लुप्त है।