पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/३९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५९
संघर्ष क्या था और क्या है?

और अपने उन देशवासियोंके मुकाबलेमें अपनी परिस्थिति अधिक अच्छी बना ली है जिन्हें उपनिवेशमें रहने और व्यापार करनेका उतना ही अधिकार है। और चूँकि जनरल स्मट्स द्वारा गम्भीरतापूर्वक दिये गये अपने वचनोंकी बराबर अवहेलना करनेसे उनकी स्थिति खतरेमें है, मुझे लगता है कि मैंने अपना वार्षिक परवाना और स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र सबसे पहले लेकर गलती की है। मैंने और उन दूसरे ब्रिटिश भारतीयोंने, जिन्होंने अबतक अनाक्रामक प्रतिरोधमें प्रमुख रूपसे भाग लिया है और जिन्होंने समझौता होनेके बाद यथाशक्ति सरकारकी मदद की है, प्रतिकार और प्रायश्चित्तके रूपमें यह तय किया है कि हम स्वयं फेरीवाले बनें और बिना परवाना फेरी लगायें। इसलिए यदि जोहानिसबर्गकी जनताको फलों और सब्जियोंकी टोकरियाँ लिए हुए अनजाने भारतीय चेहरे दिखाई दें, तो वे समझ लें कि ये वे लोग हैं जो अन्यायका प्रतिकार करने के लिए, बिना परवानोंके फेरीवाले बन गये हैं। सोच-विचार कर यह कदम लेनेमें मेरे सहयोगियोंकी इच्छा जान-बूझकर देशका कानून तोड़नेकी नहीं है। जहाँ रहते हैं उस देशके कानूनोंका हम इतना अधिक आदर करते हैं कि हमने उन कतिपय नियमोंको तोड़ना तय किया है जिन्हें गलत रूपमें कानून कहा गया है, जबकि उन्हें अत्याचारके हथियार कहना अधिक उपयुक्त है। अत्याचारके सामने झुकना किसीका कर्तव्य नहीं है, इसलिए मेरा विश्वास है कि इस समय जो कदम उठाया गया है, वह हर तरह कानूनी और न्यायपूर्ण है।

आपका, आदि,
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
स्टार, १८-७-१९०८

२१७. संघर्ष क्या था और क्या है?

ट्रान्सवालके संघर्षसे भारतीयोंको बहुत कुछ सीखनेको मिलेगा। कानून तोड़ना ही इस संघर्षका उद्देश्य नहीं था, और न है। कानून टूटनेके आसार तो नजर आ रहे हैं परन्तु उसमें कुछ ऐसी बातें हैं, जिनको लेकर कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं। फलतः यद्यपि जनरल स्मट्स उसे रद करने की बात कह रहे हैं, तथापि हम लोग उसे स्वीकार नहीं कर सकते।

अँगुलियोंके सम्बन्धमें तो संघर्ष कभी था ही नहीं।[१] अब, जबकि कानूनके अनुसार व्यापारिक परवानोंपर अँगूठेके निशान माँगे जा रहे हैं, भारतीय समाज उन्हें देनेसे इनकार कर रहा है। वह सरकारसे कहता है, "जोर-जुल्मसे हमसे कुछ नहीं कराया जा सकता। समाज इस खूनी कानूनके अन्तर्गत परवाना सम्बन्धी प्रार्थनापत्रोंपर हस्ताक्षर देनेसे भी इनकार करता है।

तब खूनी कानूनको न माननेका मतलब क्या है? यही समझना है। यह कानून रद हो और उसके स्थानपर दूसरा खराब कानून बने तो यही माना जायगा कि कुछ भी हाथ

 
  1. देखिए " समझौतेके बारेमें प्रश्नोत्तरी", पृष्ठ ७७-८१।