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२१८. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

ज्वार-भाटा

संघर्षके मामलेमें ज्वार-भाटा आता ही रहता है। अभी खबर आती है कि जल्दी ही समझौता होनेवाला है। फिर खबर आती है कि नहीं, कुछ नहीं होगा। इस प्रकार शुभ और अशुभ समाचार आते रहते हैं। पिछले हफ्ते शुक्रवारके दिन यह खबर मिली कि सरकार खूनी कानूनको निश्चय ही अमलमें लायेगी। इसपर श्री गांधीने निम्नलिखित पत्र[१] 'लीडर' को लिखा।

श्री चैमनेके नोटिसके अनुसार तो बात यह हुई कि पंजीयन प्रमाणपत्रवालोंको भी सरकार कानूनके अन्तर्गत खींचना चाहती है।

यदि ऐसा हुआ, तो जो समझौता हुआ है, उसकी प्रत्येक शर्त टूट जाती है। सारे लिखित और जबानी समझौतेपर पानी फिर जाता है। इसीसे श्री कार्टराइट और श्री हॉस्केन चौंके हैं और उन्होंने श्री स्मट्ससे भेंट की है। उस भेंटसे यह जान पड़ता है कि तीन पौंडी [ डच पंजीयन प्रमाणपत्र ]धारियों और दूसरे शरणार्थियोंका[२] हक तो रह सकेगा; अपीलकी अनुमति मिलेगी; किन्तु शिक्षित लोगोंका बचाव नहीं होगा। खबर मिली है कि स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्रधारियोंपर खूनी कानून लागू नहीं किया जायेगा। किन्तु इस खबरपर भरोसा न किया जाये। भरोसा केवल अपनी शक्तिपर रखा जाये। सोमवारके 'लीडर' में यह खबर है कि चूँकि कानून अमलमें लाया जायेगा, इसलिए जो बिना परवानेके व्यापार अथवा फेरी करेंगे उनके नाम प्रत्येक नगरपालिका उपनिवेश-सचिवके पास भेजेगी, ताकि उनके ऊपर मुकदमा चलाया जा सके।

इस खबरसे भारतीय घबरा गये और उन्होंने टिड्डियोंकी तरह नगरपालिकाके दफ्तरको घेर लिया। अनेक लोग परवाने लेने गये और उन्होंने अँगूठेके निशान माँगे जानेपर खुशीसे अँगूठेके निशान दे दिये। उन्हें परवाने मिल गये तो उसे बहुत बड़ी बात मानकर वे खुश हुए। कानूनके अन्तर्गत न आनेकी जो कसम खाई थी, वे उसे भूल गये, क्योंकि उन्होंने अँगूठेके निशान तो कानूनकी रूसे दिये थे। कुछ लोग दरवाजेके सामने खड़े होकर समझाते थे तो वे उनको उत्तर देते थे: "गांधीने १८ अँगुलियोंकी छापें दिलाईं, तो फिर हम अगर दो अँगूठोंकी छाप देते हैं तो इसमें बुराई क्या है? अर्थात् वे तो सोलह अँगुलियाँ कम दे रहे हैं। उन्हें बहुत लोगोंने इस फर्कको समझाया, लेकिन समझता कौन है। इस प्रकार सत्याग्रह संघर्षके सम्बन्धमें अज्ञान और सत्याग्रह की विशेषता, दोनोंका प्रदर्शन किया गया। अज्ञान यह है कि जो १८ अँगुलियोंकी छापें दी गई वे स्वेच्छापूर्वक दी गई थीं, फिर भी लोगोंने कानूनके अन्तर्गत दिये गये दो अँगूठोंके निशानोंसे उनका मिलान किया। विशेषता यह है कि सत्याग्रह

 
  1. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। देखिए "पत्र: ट्रान्सवाल लीडरको ", पृष्ठ ३४६-४७।
  2. अभिप्राय केवल उन्हीं लोगोंसे होना चाहिए जो बोअर युद्धके दौरान उपनिवेश छोड़ कर चले गये थे, और उसके बाद वापस लौटनेके इच्छुक थे। यह इसलिए कि तीन पौंडी डच पंजीयन प्रमाणपत्र रखनेवाले सभी व्यक्ति शरणार्थी नहीं थे।