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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो हमेशा चलता ही रहता है। कुछ लोग सत्याग्रह छोड़ दें, तो जिन्होंने नहीं छोड़ा है उन्हें कोई बाधा नहीं पहुँचती। भले ही बहुत-से भारतीय इस प्रकार अँगूठोंके निशान दे आये हैं, फिर भी बहुत-से मजबूत बने हुए हैं। वे समझते हैं कि अँगूठोंके निशान देना बुरी बात है। कानूनके अन्तर्गत जिस प्रकार सही नहीं करनी चाहिए, उसी प्रकार यह निशान भी नहीं देने चाहिए। इसलिए अनेक लोग नगरपालिका तक जाकर वापस आ गये हैं। उनमेंसे अनेक बिना परवानेके व्यापार कर रहे हैं और डरते नहीं हैं। वे जेलमें जानेके लिए तैयार होकर बैठे हैं। जो इस प्रकार इस समय जेलमें जानेके लिए तैयार होकर बैठे हैं, वे सच्चे सत्याग्रही कहे जायेंगे, क्योंकि वे दूसरोंके हितके लिए सत्याग्रह करते हैं। ये दूसरे कौन हैं? पहले तो तीन पौंडी पंजीयन प्रमाणपत्रधारी लोग, दूसरे शरणार्थी, तीसरे वे जिनकी अर्जी इस समय चैमने साहब लिये बैठे हैं और चौथे शिक्षित भारतीय।

शिक्षित भारतीय

वास्तवमें इस समय तो केवल शिक्षित भारतीयोंके लिए ही लड़ना बच गया है और यही वास्तविक संघर्ष है। श्री स्मट्सका इरादा है कि शिक्षित भारतीयोंके आनेका दरवाजा बन्द करके अन्तमें भारतीयोंको गुलाम बना दिया जाये। किन्तु यह कैसे सम्भव हो सकता है? शिक्षितों का अधिकार समाप्त कर देनेके लिए भारतीय समाज क्योंकर राजी हो सकता है? सभी इस बातपर विचार करने लगे हैं और सभी स्वीकार करते हैं कि यदि उन अधिकारोंको छोड़ दें, तो भारतीयोंकी लाज चली जायेगी।

इस समयके संघर्षमें यदि हजारों भारतीय शामिल न हों, तो भी संघर्ष होगा ही। परिस्थिति ऐसी है कि यदि ५०० खरे, उत्साही और जानको हथेलीपर रखकर चलनेवाले भारतीय रणमें शामिल हो जायें तो भारतीयोंकी लाज रह जायेगी। बैरिस्टर श्री जिन्नाको बुलानेकी बात चल रही है। क्या भारतीय समाज यह स्वीकार कर सकता है कि वे न आयें? श्री दाऊद मुहम्मदके पुत्र विलायतमें शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। क्या जब वे पढ़कर लौटेंगे, तो ट्रान्सवालमें नहीं आ सकेंगे? यदि आयेंगे तो क्या श्री स्मट्सकी मेहरबानीसे आयेंगे? श्री जोजेफ रायप्पन थोड़े ही दिनोंमें आनेवाले हैं। उनकी पैदाइश दक्षिण आफ्रिकाकी है। वे भी नहीं आ सकेंगे। भारतीय समाज इन सबको छोड़ दे, यह कैसे हो सकता है? यह याद रखना चाहिए कि इस पाबन्दीको लगानेमें भारतीय समाजकी स्वीकृति माँगी जाती है। गोरे स्वयं मिलकर ऐसा कानून बनायें, तो बात अलग है। हमें उसके विरोध में लड़ना पड़ा, तो लड़ेंगे। किन्तु कौन भारतीय यह कह सकता है कि आप खुशीसे यह कानून बनायें; हम उसे मंजूर करेंगे।

भारतीयोंके शत्रु

किन्तु ऐसी तकलीफें हमें क्यों होती है? उत्तर यह है कि कुछ भारतीय ही हमारे शत्रु बने बैठे हैं। वे जनरल स्मट्ससे कहते हैं कि भारतीय समाज में दम नहीं रहा, सब लोग कानूनको कबूल कर लेंगे; परवाने जलाने की बात तो धमकी है; सब परवाने लेंगे और अँगूठेके निशान देंगे; ऊधम मचानेवालोंमें श्री गांधी और थोड़े-से भारतीय हैं और बाकी लोगोंको कोई कष्ट नहीं है। वे लोग इस तरहकी बातें करते हैं और जनरल स्मट्सको ये अच्छी लगती हैं। वे इन्हें सत्य मान लेते हैं और इस कारण भारतीय कष्ट उठाते हैं।