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बातचीत चली तब यह सुझाव दिया गया कि शान्ति-रक्षा अध्यादेशमें संशोधन किया जाये और वास्तव में श्री डंकनने लॉर्ड एलगिनको एक विधेयकका मसविदा भेजा भी था। यह विधेयक पिछली एशियाई नीली पुस्तिकामें छपा है। उसपर किसीने बिलकुल आपत्ति नहीं की थी।

पंजीयन अधिनियमका आरम्भ

उसके बाद ऐसा प्रतीत होता है कि श्री लॉयनेल कर्टिस सामने आ गये। उन्होंने शान्तिरक्षा अध्यादेशमें संशोधन नामंजूर कर दिया और वर्तमान पंजीयन विधेयक बनाया। यह एशियाइयों के सम्बन्धमें है और उनको एक विशेष वर्ग मानकर चलता है। भारतीयोंको इतनी अधिक चिढ़ इसीसे हुई है। यह पूर्णतः सत्य है कि पहले कुछ वर्गीय कानून बने हैं; किन्तु ऐसे कड़े कभी नहीं बने।

एशियाइयोंकी कथित बाढ़

उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंकी बाढ़ के सम्बन्धमें जहाँतक संगठित गैर कानूनी प्रवेशकी बात है, हमने उसका सदा ही खण्डन किया है। एशियाई दफ्तरोंके काम-काजकी थोड़ी-सी जानकारीसे यह प्रकट हो जाना चाहिए कि कप्तान फाउल द्वारा मंजूर किये गये परवाने जारी होनेके बाद जाली परवाने बनाना प्रायः असम्भव था। वास्तवमें जो बात होती थी वह केवल इतनी थी कि कभी-कभी परवाने गलत लोगोंको मिल जाते थे, क्योंकि वे जोहानिसबर्ग में एशियाई अधिकारियोंको रिश्वत देनेमें सफल हो जाते थे। जब ब्रिटिश भारतीय संघने इस भ्रष्टाचारकी ओर सर आर्थर लॉलीका' ध्यान बारबार आकर्षित किया तब वे अधिकारी हटाये गये। जब मैं गलत लोगोंकी बात कहता हूँ तो मेरा आशय यह नहीं होता कि वे इन परवानोंके अधिकारी न थे; बल्कि यह होता है कि इन लोगोंको परवाने पहले लेनेका अधिकार न था। मैं कई पुराने शरणार्थियोंको जानता हूँ, जिनको अपने परवाने रुपये देनेपर ही मिल सके थे। फिर भी ये सब कागज वैध थे और उन लोगों के पास थे जिनका उनमें उल्लेख था। इन अधिकारियोंके गुमाश्ते बहुत बड़ी-बड़ी रकमोंका वारान्यारा करते थे।

खण्डन

मैं इस बातका खण्डन जोर देकर करता हूँ कि 'हजारों भारतीय' जिन्हें इस देशमें आनेका कोई अधिकार न था, यहाँ अनधिकृत रूपसे आ गये हैं।

प्रतिनिधि श्री गांधीका ध्यान श्री स्मट्सके इस वक्तव्यकी ओर आकर्षित किया कि ५,००० भारतीय पंजीयन कराने के बजाय देशसे चले गये। श्री गांधीने उत्तर दिया कि उनमें से बहुत से लोगोंको इस देशमें रहनेका पूरा अधिकार था--उनके उस अधिकारपर कोई सन्देह नहीं किया जा सकता था-- किन्तु उनमें इस मुसीबतका सामना करनेकी शक्ति न थी।

१. पैट्रिक डंकन, ट्रान्सवाल सरकार के भूतपूर्व उपनिवेश सचिव, विधान परिषद के सदस्य।

२. जोहानिसबर्ग टाउन क्लार्क, १९०२-३ । ट्रन्सवालमें नागरिक मामलोंके सहायक उपनिवेश-सचिव, १९०३-६ । बादमें नई ट्रान्सवाल विधान परिषद्के मनोनीत सदस्य। घनिष्ठतर ऐक्य संघ सम्बन्धी आन्दोलनके एक पेशवा। "वैज्ञानिक तरीका" अपनानेके प्रति उन्हें बहुत उत्साह था और "भारतमें द्वैध शासनके प्रवर्तकके रूपमें उन्होंने नाम कमाया था" देखिए दक्षिण अफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय १० । वे एशियाई कानून संशोधन अध्यादेशके एकमात्र निर्माता थे। यह अध्यादेश इसलिए निकाला गया था कि उनकी दृष्टिमें गोरों और भारतीयों के बीच समानताका होना असम्भव था, देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ४८२ । प्रोग्रेसिव वीकलीने उन्हें "कठोर और दृढ़ प्रगतिवादियोंकी एक उदीयमान आशा" कहा था।

३. एक समय न्सिवालके लेफ्टिनेंट गवर्नर।