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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बेचने जायेंगे। वे छोटी-सी टोकरी रखेंगे। ऐसा करके वे देखना चाहते हैं कि सरकार उन्हें किस तरह गिरफ्तार करती है। आज अनेक भारतीयोंमें बहुत जोश भर गया है। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके प्रमुख तथा अन्य भारतीय नेता भी ऐसा ही करेंगे। जो शिक्षित भारतीय हैं, उन्होंने भी यही विचार किया है। यदि ऐसा उत्साह रहा, तो संघर्षका अन्त करीब ही है। जिस समाजमें ऐसे जोशीले व्यक्ति हों, वह समाज कभी पीछे नहीं हट सकता। समाजमें नई शक्ति आ गई है और वह संघर्षकी विशेषताको समझने लगा है।

धरनेदार फिर तैयार

लोग नगरपालिकाके दफ्तरमें अँगूठोंकी छाप देकर परवाना लेने न जायें, यह समझानेके लिए नीचे लिखे भारतीयोंने धरना देना तय किया है:

सर्वश्री भाईजी इब्राहीम, अली इस्माइल, मूलजी जी० पटेल, अली उमर, रणछोड़ मीठा और बगस बापू, वगैरह।

अन्तिम समाचार

'स्टार' लिखता है कि शिक्षितोंके बारेमें भी सरकार समझौता करेगी।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-७-१९०८

२१९. सर्वोदय [९]

सही क्या है?

पिछले तीन अध्यायोंमें हम देख आये हैं कि अर्थ-शास्त्र के जो साधारण नियम माने जाते हैं, वे ठीक नहीं हैं। उन नियमोंके अनुसार चलनेसे व्यक्ति और राष्ट्र दुःखी होते हैं; गरीब अधिक गरीब बनते हैं और धनवान लोगोंके पास अधिक धन इकट्ठा हो जाता है। तब भी इन दोनोंमें से एक भी सुखी नहीं होता और न सुखी रहता है।

अर्थ-शास्त्री लोगोंके आचरणपर विचार नहीं करते। वे मानते हैं कि जितना अधिक धन इकट्ठा हो, उतनी ही अधिक खुशहाली होती है। इसलिए वे प्रजाके सुखका आधार धनको ही मानते हैं। इस कारण वे यह समझाते हैं कि उद्योग-धन्धों आदिके विस्तारसे जितना धन इकट्ठा हो जाये, उतना अच्छा है। ऐसे विचारोंके फैलनेसे इंग्लैंड तथा अन्य देशोंमें कारखानोंकी भरमार हो गई है। बहुत-से लोग शहरोंमें आ बसते हैं और खेत छोड़ देते हैं। बाहरकी सुन्दर और स्वच्छ हवा छोड़कर कारखानोंमें सारे दिन दुषित वायुमें साँस लेनेमें वे सुख मानते हैं। इसके परिणाम-स्वरूप प्रजा निर्बल होती जाती है, लोभ बढ़ता जाता है, अनीति अधिक फैलती है और (जब हम) अनीतिको दूर करनेकी बात करने बैठते हैं, तब बुद्धिमान गिने जानेवाले लोग कहने लगते हैं कि अनीति दूर नहीं हो सकती। अज्ञानियोंमें एकदम ज्ञान उत्पन्न नहीं होता, इसलिए जैसा चल रहा है, चलने दो। ऐसी दलील पेश करते हुए वे यह भूल जाते हैं कि गरीबोंकी अनीतिका कारण अमीर लोग हैं। उनकी खातिर---उनके मौज-शौक पूरे करनेकी खातिर गरीब मजदूर रात-दिन गुलामी करते हैं। उन्हें कुछ सीखनेके