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सर्वोदय [९]

लोगोंका नियन्त्रण हो जो खुद लुटेरे नहीं हैं। अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड, ये सब बड़े राज्य हैं। लेकिन वे सचमुच सुखी हैं, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है।

स्वराज्यका सच्चा अर्थ है, अपनेको काबूमें रखना जानना। ऐसा तो वही मनुष्य कर सकता है जो स्वयं नीतिका पालन करता है; किसीको ठगता नहीं है, सत्यको छोड़ता नहीं है, अपने माता-पिता, अपनी पत्नी, अपने बाल-बच्चों, नौकरों और पड़ोसियों---सभीके प्रति अपने कर्तव्यका पालन करता है। ऐसा व्यक्ति, चाहे जिस देशमें हो, स्वराज्य भोगता है। जिस समाजमें ऐसे मनुष्योंकी बहुलता हो, उस समाजके लिए सहज ही स्वराज्य है।

एक प्रजा दूसरीपर राज्य करे, यह बात सामान्यतया गलत है। अंग्रेज लोग हमपर राज्य करते हैं यह एक अवाञ्छनीय स्थिति है। लेकिन अंग्रेज लोग हिन्दुस्तान छोड़ जायें तो भारतीयोंने कुछ कमाई कर ली, ऐसा माननेका कोई कारण नहीं है। वे राज्य कर रहे हैं इसका कारण हम स्वयं हैं। वह कारण है---हमारी आपसी फूट, हमारी अनीति और हमारा अज्ञान।[१]

अगर ये तीनों चीजें दूर हो जायें, तो सिर्फ इतना ही नहीं कि हमें एक पत्ता भी हिलाना न पड़ेगा और अंग्रेज हिन्दुस्तान छोड़ देंगे, बल्कि हम सच्चा स्वराज्य भोगने लगेंगे।

बमका गोला छोड़नेसे बहुत लोगोंको प्रसन्नता होती है---ऐसा देखनेमें आ रहा है।[२] यह निरे अज्ञान और नासमझीकी निशानी है। यदि सब अंग्रेजोंको मार डाला जा सके तो जो मारनेवाले हैं वे ही हिन्दुस्तानके स्वामी बन बैठेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि हिन्दुस्तान तो विधवाका विधवा ही रह जायेगा। अंग्रेजोंको मारनेवाला बम अंग्रेजोंके चले जानेके पश्चात् हिन्दुस्तानपर ही पड़ेगा। फ्रांसके प्रजातन्त्रके प्रेसीडेंटको मारनेवाला फ्रांस देशका निवासी ही था। अमरीका के प्रेसीडेंट क्लीवलैंडकी हत्या करनेवाला एक अमरीकी ही था।[३]इसलिए हमें यही उचित है कि हम जल्दीमें आकर बिना सोचे-विचारे पश्चिमकी प्रजाकी नकल अन्धोंकी तरह न करें।

जिस प्रकार पाप-कर्म द्वारा---अंग्रेजोंको मारकर---सच्चा स्वराज्य नहीं मिल सकता उसी प्रकार भारतमें कारखाने खोल देनेसे भी स्वराज्य मिलनेका नहीं। सोना-चाँदी इकट्ठा होनेसे कुछ स्वराज्य नहीं मिल जायेगा। इस बातको रस्किनने बड़ी स्पष्टताके साथ सिद्ध किया है।

याद रखना चाहिए कि पश्चिमी सभ्यताको अभी सौ ही साल हुए हैं। सच पूछा जाये तो केवल पचास। इतने समयमें पश्चिमकी प्रजा वर्ण संकर जैसी दीख पड़ रही है। हमारी [ ईश्वरसे ] प्रार्थना है कि जैसी दशा यूरोपकी है वैसी हिन्दुस्तानकी कभी न हो। यूरोपकी प्रजाएँ एक-दूसरेपर घात लगाये बैठी हैं। केवल अपने-अपने गोले-बारूदकी तैयारीके कारण ही सब चुप्पी साधे हुए हैं। किसी समय बड़ा ही जबर्दस्त धड़ाका होगा और उस अवसरपर यूरोपमें नरकका दृश्य दिखाई पड़ेगा। यूरोपका प्रत्येक राज्य काले आदमियोंको अपना भक्ष्य मान बैठा है। जहाँ केवल धनका लोभ है, वहाँ अन्य बात हो ही नहीं सकती। उन्हें एक भी मुल्क नजरमें आ जाये तो वे उसपर उसी प्रकार टूट पड़ते हैं जिस प्रकार कौए मांसके टुकड़ेपर कूद पड़ते हैं। यह उनके कारखानों के कारण होता है, ऐसा माननेके कारण भी हैं।

 
  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४७४-७५ भी।
  2. गांधीजी यहाँ मुजफ्फरपुर बम काण्डकी याद करते मालूम होते हैं। देखिए "भारतमें संघर्ष", पृष्ठ २१६।
  3. प्रेसीडेंट क्लीवलैंडकी मृत्यु स्वाभाविक रूपसे हुई थी। गांधीजीके मनमें प्रेसीडेंट लिंकनका नाम रहा होगा। देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ५६।