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चैपलिनके नाम पत्रका अंश

अँगुलियोंके निशान देकर कितना बड़ा उपकार किया, उसे सरकार ठीक-ठीक समझ नहीं पाई है; और अब लोगोंको यह समझनेमें देर लगती है कि परवाना अधिकारीको अँगूठेके निशान देना और स्वेच्छया पंजीयनके अन्तर्गत अँगुलियोंके निशान देना एक ही बात नहीं है। परवाना अधिकारीके सामने उन्होंने जो कुछ किया वह उस कामका प्रतीक है जिसके विरुद्ध हमने शपथ ली है। और मैं तथा मेरे अन्य देशवासियोंने---चाहे वे हिन्दू हों, चाहे मुसलमान या ईसाई---फेरीके पेशेके आदी न होनेपर भी अगर इसे अपनानेमें सुख माना है तो उसका कारण यह है कि हम अपने प्रति सरकारके बेईमानीके बरताव के विरुद्ध कोई ठोस आपत्ति प्रकट करना चाहते हैं।

आपका, आदि,
इमाम अ० का० बावजीर
अध्यक्ष,
हमीदिया इस्लामिया अंजुमन

[ अंग्रेजीसे ]
स्टार, १८-७-१९०८

२२१. चैपलिनके नाम पत्रका अंश [१]

जुलाई २०, १९०८

...भारतीयोंने प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत किसी भी नई चीजकी माँग बिलकुल नहीं की है। शैक्षणिक योग्यतावाले भारतीय औपचारिक रूपसे नहीं, वरन् अधिकार पूर्वक प्रवेश कर सकते हैं। अब जनरल स्मट्स ही भारतीयोंसे उस कानूनमें रद्दोबदल करनेपर रजामन्द होनेकी माँग करते हैं, जिससे ऐसे भारतीयोंको निषिद्ध बना दिया जाये ...।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफिस, ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ३७२२/०८।

 
  1. यह पत्रांश, ट्रान्सवालमें होनेवाली घटनाओंके उस संक्षिप्त विवरणसे लिया गया है जो श्री रिचने अपने ६ अक्टूबर १९०८ के पत्रके साथ उपनिवेश कार्यालयको भेजा था।
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