२२३. भाषण: जोहानिसबर्गमें
[ जुलाई २०, १९०८ ]
...अदालतकी कार्यवाही[१] समाप्त होनेपर श्री गांधीने अपने कार्यालयके बाहर एकत्र भीड़के सामने भाषण किया।
उन्होंने कहा कि श्री सोराबजी एक सिद्धान्तके लिए जेल गये हैं, न कि एशियाई प्रवासियोंके अनियन्त्रित प्रवेशके लिए ट्रान्सवालके दरवाजे खोल देनेके ध्येयसे। वे प्रवासी कानूनके अन्तर्गत उस कानूनकी शैक्षणिक योग्यताकी परीक्षा पास करनेके लिए आये थे जिसमें जाति, वर्ग या रंगका भेदभाव नहीं है। उन्होंने सात वर्ष तक अंग्रेजी भाषाका अध्ययन किया था, किन्तु अब उन्होंने देखा कि यद्यपि प्रवासी कानून सबपर समान रूपसे लागू होता था, और यद्यपि वे एक ब्रिटिश उपनिवेशकी ब्रिटिश प्रजा थे, तथापि उनका अंग्रेजी भाषाका सारा ज्ञान व्यर्थ था।
श्री गांधीने अपना भाषण जारी रखते हुए कहा कि [ हमारा ] अगला कदम यह है कि जिन लोगोंके पास परवाने हैं वे उन्हें लौटा दें और इसके परिणामस्वरूप बिना परवानेके व्यापार करनेके अपराधमें गिरफ्तार होना और जेल जाना स्वीकार करें। वे अपने प्रमाण-पत्र भी लौटा दें। हम वर्तमान सुविधाओं का लाभ न उठा कर पूरे [ भारतीय ] समाजके रूपमें कष्ट झेलने को तैयार हैं, यह सिद्ध करनेपर ही यूरोपीय समाजको विश्वास दिला सकेंगे कि हम सिद्धान्तके लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने यह बात दोहरा कर कही कि उपनिवेश-सचिवने वचन दिया था कि यदि एशियाई लोग स्वेच्छया पंजीयन करा लेंगे तो एशियाई अधिनियम बिना शर्त रद कर दिया जायेगा। किन्तु यह वचन पूरा नहीं किया गया।
भारतीयोंके विसर्जित होनेसे पहले कुछ लोगोंने अपने व्यापारिक परवाने, और अनेक व्यक्तियोंने अपने पंजीयन प्रमाणपत्र निकाल कर दे दिये; और ऐसी आशा है कि इस उदाहरणका बड़ी संख्यामें अनुसरण किया जायेगा। हमें ज्ञात हुआ है कि तीसरे पहर पुलिस-अदालतके प्रवेश द्वारके सामनेसे पुलिसने भारतीयोंको जिस ढंगसे हटाया था उससे, और श्री सोराबजीको जो सजा दी गई उससे, भारतीयोंमें बहुत रोष है। उनका कहना है कि राजनीतिक अपराधके लिए सख्त कैदको सजा नहीं दी जानी चाहिए थी।
इंडियन ओपिनियन, २५-७-१९०८
- ↑ तीसरे पहर हुए सोराबजी शापुरजीके मुकदमेके सम्बन्धमें।