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भाषण: सार्वजनिक सभामें

दूसरे भारतीयोंके साथ-साथ उसने भी परवानेका शुल्क तो दे दिया है, परन्तु कानूनकी विधियोंकी पूर्ति करनेसे इनकार कर दिया है।

न्यायाधीशने सरकारी वकीलसे पूछा कि क्या इन मामलोंके बारेमें उन्हें कोई हिदायतें मिली हैं? श्री शॉने कहा, नहीं; किन्तु उन्होंने बताया कि कुछ महीने पहले जरूर कुछ सूचनाएँ मिली थीं।

न्यायाधीशने हुक्म दिया कि मामला बुधवार तक मुल्तवी किया जाये और तबतक पूछताछ कर ली जाये।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-७-१९०८

२२७. भाषण: सार्वजनिक सभामें

[जोहानिसबर्ग
जुलाई २०, १९०८]

श्री कार्टराइटसे समाचार मिला है, कि यदि हम शिक्षित [एशियाइयों] के अधिकारोंकी बात न उठायें, तो सरकार समझौता करेगी। परन्तु पिछली सभामें आप सबने यह प्रस्ताव पास किया था कि शिक्षितोंके लिए तो संघर्ष करना ही है; और आपका यह कदम प्रशंसनीय है; हमसे शिक्षितोंके अधिकार तो मारे ही नहीं जा सकते। समाचारपत्रोंमें सरकारने यह सूचना प्रकाशित कराई थी कि [एशियाई पंजीयन] कानून हमेशा बना ही रहेगा, और परवाने न लेनेवालोंको कानूनके अनुसार दण्ड भी दिया जायेगा। हम लोग फिलहाल परवाने हासिल कर लें---ऐसा होनेवाला नहीं है। इसका कारण यह है कि सरकार कानूनके अनुसार अँगूठेकी छाप माँग रही है। यदि कानूनके बाहर यानी स्वेच्छया देनेकी बात होती, तो मैं स्वयं यह सलाह देता। परन्तु कानूनके अन्तर्गत तो मैं किसीको हस्ताक्षर तक करनेकी सलाह नहीं दे सकता। बहुत-से लोग कहते हैं कि मैंने हिन्दुओं और मुसलमानोंसे फी आदमी दो-दो गिन्नियाँ बतौर फीसके ली हैं। अब सभामें आये हुए सज्जन ही मुझे बतायें कि मैंने कितने लोगोंसे दो-दो गिन्नियाँ ली हैं। सरकार मुझपर यह तोहमत लगाती है कि मैं ही लोगोंको बिना कारण उकसाता हूँ। सरकार भले ही ऐसा कहे, परन्तु मैं तो अपने भाइयोंके सामने वही चीज रखूँगा जो सत्य होगी और इसी प्रकार मैं अपना फर्ज अदा करता हूँ। और मेरे ऐसा करते हुए सरकार भले मुझपर जो चाहे सो तोहमत लगाये। सरकार द्वारा प्रकाशित सूचनाओंसे घबरा जानेवाले बहुत-से सज्जनोंने परवाना ले लिया है। उनसे मैं यह कहना उचित समझता हूँ कि वे अपने परवाने काममें न लाकर अपनेको गिरफ्तार करा लें, और इस प्रकार जनवरी महीनेकी तरह ही फिर जेलोंको भर दें; यदि ऐसा होगा तो सरकारका गर्व भी मिट जायेगा। कुछ लोगोंने अध्यक्षको[१] फेरी लगानेके सम्बन्धमें सलाह दी है कि वे ऐसा न करें। परन्तु उनकी यह सलाह अनुचित है। जो लोग अपने स्वार्थकी

 
  1. ईसप मियाँ।