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इस्माइल आकूजी तथा अन्य लोगोंका मुकदमा

अँगूठेके निशान देते हैं, किसी अन्यको परवाना न तो दिया जायेगा और न नया किया जायेगा।

जिरह करनेपर उन्होंने कहा, मुझे याद है कि गत जनवरीमें अनेक मुकदमे चलाये गये थे और उस समय एशियाइयोंको सजा दी गई थी।

फरवरीमें सरकारने मुझे निर्देश दिया था कि मैं उन सब एशियाइयोंको परवाना दे दूँ जो एशियाई पंजीयक द्वारा लिखा गया इस आशयका पत्र मुझे दिखा दें कि उन्हें स्वेच्छया पंजीयनके लिए उनका प्रार्थनापत्र प्राप्त हो गया है। ऐसे एशियाइयोंसे अँगूठेके निशान देनेके लिए कतई नहीं कहा जाता था। अतः मैं ३१ मार्चको समाप्त होनेवाली तिमाही अवधिके लिए परवाने दे सकता था। बादमें मुझे ३० जूनको समाप्त होनेवाली तिमाही अवधिके लिए भी परवाने देनेका अधिकार दिया गया। मेरा खयाल है कि मेरे विभागसे पूरे वर्षके लिए कोई परवाना नहीं दिया गया। इस माहकी ७ तारीखवाले पत्रमें जो निर्देश थे वे संशोधित और नवीनतम निर्देश थे। यह सही है कि अनेक एशियाइयोंने स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र तो दिखाये किन्तु अँगूठेके निशान देना अस्वीकार कर दिया।

[ न्यायाधीश: ] यदि अँगूठेके निशान देनेसे इनकार किया जाये तो?

जेफर्सन: मैं परवाना देनेसे इनकार कर देता हूँ। पंजीयन प्रमाणपत्र दिखाना आवश्यक है।

गवाहका खयाल ऐसा नहीं था कि किसीने पंजीयन प्रमाणपत्र दिखाना अस्वीकार किया होगा। केवल उन्हीं व्यापारियोंने पंजीयन प्रमाणपत्र नहीं दिखाये जिन्हें वह मिला ही नहीं था।

न्यायाधीशके प्रश्नका उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि जूनके अन्ततक अँगूठेके निशान देना अनावश्यक था। तत्पश्चात्, इस आवश्यकताके सम्बन्धमें कोई सूचना उस समय तक नहीं थी, जबतक एशियाई लोग परवानेके लिए प्रार्थनापत्र देने नहीं आये। जून माहके अन्ततक अँगूठेके निशान न देनेके सम्बन्धमें 'गजट' में कोई चर्चा नहीं थी। लगता है, यह सरकारका अनुग्रहपूर्ण कार्य था।

इसके साथ ही सरकारी पक्षकी बहस समाप्त हो गई।

अभियुक्तने अपने ही सम्बन्धमें गवाही देते हुए कहा कि मैंने चालू महीनेमें परवानेके लिए प्रार्थनापत्र दिया था। मुझे परवाना देना अस्वीकार कर दिया गया था, क्योंकि मुझसे कानूनके अन्तर्गत अँगूठेके निशान देने को कहा गया जो मैंने देनेसे इनकार कर दिया था। मेरे पास जून माहके अन्ततकके लिए परवाना था और स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र भी।

जिरहके उत्तरमें [ अभियुक्तने कहा: ] जिस समयका जिक्र है उस समय मैं बिना परवानके व्यापार नहीं कर रहा था, बल्कि एक डलियामें फल लिए हुए फलोंकी दूकानकी ओर पैदल चला जा रहा था। मैं ग्राहकोंकी तलाशमें नहीं था। यह सही है कि मैं सुबह बिना परवानेके व्यापार कर रहा था। इसके साथ बचाव पक्षकी बहस समाप्त हुई।

श्री गांधीने अदालतको सम्बोधित करते हुए कहा कि कल अपराह्नमें गवाही देते हुए मैंने जो कुछ कहा था उसके अलावा बहुत थोड़ी-सी बात ही कहनी है। ऐसा लगता है कि सरकारने पहले एक आशयके निर्देश जारी किये और बादमें दूसरे आशयके। और हालत यह