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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है कि भारतीयोंको मालूम ही नहीं कि उनकी स्थिति क्या है। यदि सरकारको कार्रवाई करनी है तो नेताओंके विरुद्ध करनी चाहिए, न कि अभियुक्त जैसे लोगोंके विरुद्ध।

अभियुक्तको १० शिलिंग जुर्माने अथवा ४ दिनके कठोर कारावासकी सजा दी गई।

मूसा ईसप, हरी भीखा, दया पराग, सालेजी बेमात, इस्माइल इब्राहीम, केशव गुलाब और नागर मोरारको[१] भी यही सजा सुनाई गई। इन लोगोंकी पैरवी भी श्री गांधीने की थी।

अहमद ईसप दाऊदपर भी उपर्युक्त अभियोग लगाये गये, किन्तु उनकी पुकार होनेपर कोई जवाब नहीं मिला। उनकी जमानत जब्त कर ली गई। कुछ मिनट बाद ही वे अदालतमें आये और बताया कि मैंने अपना नाम पुकारते नहीं सुना था। श्री गांधीने अदालतसे कहा कि उनकी जमानत वापस कर दी जाये, पर न्यायाधीशने कहा कि ऐसा कर सकना मेरे अधिकारमें नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-७-१९०८

२२९. तार: दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिको

[ जोहानिसबर्ग,
जलाई २१, १९०८ ][२]

[ 'आफ्रिकालिया'
लन्दन ]

चार मुसलमान, चार हिन्दू फेरीवालोंने बिना परवाना व्यापार करके जेलकी सख्त सजा भोगना पसन्द किया। उन्होंने परवाना शुल्क दिया, पर एशियाई अधिनियमकी औपचारिकताएँ पूरी करनेसे इनकार कर दिया। हमीदिया अंजुमनके अध्यक्ष, पाँच अन्य प्रमुख भारतीय भी समान अभियोगमें गिरफ्तार। जमानतपर छूटना अस्वीकार। अध्यक्ष मुस्लिम मौलवी तबकेके हैं। जबर्दस्त सनसनी।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफिस, ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, २८९६/०८।

 
  1. नागजी मोरार? देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ ३८३।
  2. इमाम बावजीर मंगलवार (२१ जुलाई, १९०८) को गिरफ्तार किये गये थे। यह तार रिच द्वारा इंडिया ऑफिसको लिखे गये २२ जुलाई, १९०८ के पत्रके साथ संलन किया गया था।