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२३०. जनरल स्मट्सके नाम पत्रका सारांश[१]

जुलाई २१, १९०८

श्री गांधी जनरल स्मट्सको लिखे एक पत्रमें इस बातका संकेत करते हैं कि जब समाजके अनेकानेक साधारण लोग पंजीयन कानूनके अन्तर्गत कैदकी सजा भोग रहे हैं, तब वे स्वयं आजाद हैं---हालाँकि उन्होंने भी प्रमाणपत्र नहीं लिया है, और जो कुछ भी उनके देशवासियोंने किया हो, उसके खुद वे ही मुख्य निमित्त हैं। वे पूछते हैं, "क्या मुझे अकेला छोड़ देना और गरीब भारतीयोंको सताना साहसका काम है?" वे फिर जोर देकर कहते हैं कि वे ट्रान्सवालकी आम जनताकी सेवा करनेको वैसे ही आतुर हैं, जैसे अपने देशवासियोंकी सेवा करनेके लिए।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफिस, ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ३७२२/०८।

२३१. पत्र: ए० कार्टराइटको

[ जोहानिसबर्ग ]
जुलाई २१, १९०८

प्रिय श्री कार्टराइट,

बिना परवाना फेरी लगानेपर आठ भारतीय---चार मुसलमान और चार हिन्दू---आज चार दिनकी सजा भुगतनेके लिए जेल गये हैं।[२] कारावासकी सजा कठोर परिश्रम सहित दी गई है। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके अध्यक्ष श्री इमाम अब्दुल कादिर, जेलसे भेजे गये पत्रपर मेरे साथ हस्ताक्षर करनेवाले श्री टी० नायडू, तथा चार अन्य लोग भी बिना परवाना फेरी लगानेपर गिरफ्तार कर लिये गये हैं। ये अन्तिम सभी भद्र पुरुष हैं, साधारण जीवनमें फेरी लगाना जिनका काम नहीं रहा; लेकिन उन्होंने विरोध प्रकट करनेके लिए ऐसा किया है। इमाम अब्दुल कादिरकी गिरफ्तारीसे दक्षिण आफ्रिकामें ही नहीं, सारे भारतमें तहलका मच जायेगा। 'इमाम' शब्दका अर्थ है 'पुरोहित'। मस्जिदमें पुरोहिताई करना उनका पेशा था और अक्सर अब भी रहता है। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके अध्यक्षका पद भी बहुत जिम्मेदारीका है।

आपका हृदयसे,

श्री अल्बर्ट कार्टराइट
प्रिटोरिया

टाइपकी हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४८५३) से।

 
  1. मूल पत्र उपलब्ध नहीं है। यह अंश उस सारांशमेंसे लिया गया है, जो रिचने ६ अक्तूबर, १९०८ को लिखे गये अपने पत्रके साथ उपनिवेश-कार्यालयको भेजा था।
  2. "इस्माइल आकूजी तथा अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ ३७६-७८।