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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

करनेका, यदि वह सिद्ध की जा सकती है तो, समय है। उदाहरणार्थ, निम्न मुद्दोंके सम्बन्धमें गवाही लेनेके लिए उच्च न्यायालयके एक न्यायाधीशकी या जोहानिसबर्गके मुख्य न्यायाधीशकी नियुक्ति क्यों न कर दी जाये : (१) क्या चोरीसे प्रवेशका कोई संगठित प्रयत्न किया गया है? (२) क्या शान्ति-रक्षा अध्यादेश धोखेबाजीके प्रयत्नका सामना करनेके लिए पर्याप्त है? (३) क्या पूरी शिनाख्तके लिए दस अँगुलियोंकी छाप लेनी आवश्यक है? (४) क्या प्रवासी-प्रतिबंधक अधिनियम में थोड़ासा संशोधन करके पूरी शिनाख्त कराना सम्भव नहीं है?

चौथे मुद्देके बारेमें उन्होंने बताया कि हम शान्ति-रक्षा अध्यादेशको स्थायी रूपसे विधान संहितामें नहीं रख सकते; किन्तु प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियममें सुगमतासे ऐसा संशोधन किया जा सकता है, जिससे सरकार सब एशियाइयोंको, जो अन्यथा निषिद्ध प्रवासी हो जायेंगे, अधिवास प्रमाणपत्र दे सके। ऐसे संशोधनसे अनिवार्यताका डंक निकल जायेगा और हम अनावश्यक वर्गीय कानूनसे भी बच जायेंगे एवं वह निश्चय ही एक रक्षात्मक कानून माना जायेगा।

डराना-धमकाना

श्री गांधीने कहा :

डराने-धमकानेके सम्बन्धमें में केवल यही कह सकता हूँ कि किसी भी प्रकारकी शारीरिक जोर-जबर्दस्ती नहीं की गई है; हाँ, बिरादरीसे अलगाव और बहिष्कार अवश्य किया गया है। किन्तु जबतक भारतीय अनाक्रामक प्रतिरोधी रहते हैं तबतक मुझे ऐसे मार्ग से बचनेका कोई उपाय दिखाई नहीं देता। अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधारपर मैं यह कहता हूँ कि जिन भारतीयोंने पंजीयन करा लिया है, उन्होंने भी इसलिए कराया है कि वे अपनी उपनिवेशमें रहनेकी अभिलाषाको दबा नहीं सके हैं; और इसलिए नहीं कराया है कि वे अधिनियमको पसन्द करते हैं। जिन लोगोंने सबसे पहले पंजीयन कराया उनमें से एकने 'इंडियन ओपिनियन' को एक लम्बा पत्र लिखा है, जिसमें इस बातपर खेद प्रकट किया है। कि उसे पंजीयन कराना पड़ा। उसने सामान्य समाजको संघर्ष जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया है और संघर्षकी सफलताकी कामना की है। मेरे पास ऐसे बहुत-से पत्र हैं जो मुझे उन लोगोंने, जिन्होंने पंजीयन करा लिया है, व्यक्तिगत रूपसे लिखे हैं। और बहिष्कारमें क्या हमने बोअरोंका ही थोड़ा-बहुत अनुकरण नहीं किया? मैं नहीं समझता कि हम उस हदतक गये हैं जिस हदतक नेशनल स्काउटोंके सम्बन्धमें बोअर गये थे।

जनरल स्मट्सका वक्तव्य

श्री गांधीने आगे कहा :

नेताओं द्वारा समाजको धोखा दिया जानेके सम्बन्धमें, मुझे खेद है कि जनरल स्मट्सने ऐसी बात कही है। मैं किसी खण्डनके भयके बिना कह सकता हूँ कि यह कानून लोगोंके बीच अपने सही रूपमें और व्यापक तौरपर वितरित किया गया है और उसका अनुवाद स्वतः एक अत्यन्त शक्तिशाली तर्क सिद्ध हुआ है। नेताओंने इस कानूनके सम्बन्धमें जो बात सच्ची समझी है, उसको ब्रिटिश भारतीयोंके सम्मुख रखनेका पूरा प्रयत्न किया है। यदि लोगोंसे शाही संरक्षणपर भरोसा रखनेका अनुरोध करके हमने उन्हें भ्रमित किया है तो मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ; किन्तु मुझे भय है कि मैं अपने देशवासियोंसे उस संरक्षणपर सदा भरोसा रखनेके लिए तबतक कहूँगा जबतक लॉर्ड एलगिन व्यवहारतः यह सिद्ध न कर दें कि