पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३
भेंट : 'ट्रान्सवाल लीडर' को

हमारे मुट्ठी भर ब्रिटिश भारतीय सम्राट् के नामपर किये गये अपमानके विरुद्ध संरक्षणके लिए चिल्लायेंगे तो वे असहाय छोड़ दिये जायेंगे और उनकी रक्षाके लिए एक अँगुली भी न उठाई जायेगी। यह अन्ध-विश्वास हो सकता है; किन्तु मैं उसे कायम रखना चाहता हूँ। मेरा विचार—और इस वक्तव्यको अपने देशवासियोंके सम्मुख रखने में भी मैंने इसके साथ एक दूसरा वक्तव्य सदा जोड़ा है—यह है कि हमें अन्तिम विश्वास ईश्वरपर होना चाहिए। सम्भव है मैंने अपने देशवासियोंको गलत समझा हो। मैं निश्चय ही इस आन्दोलनके कुछ नेताओंपर मुकदमे चलानेका स्वागत करता हूँ। इससे जनरल स्मट्सको, जनताको और स्वयं मुझे भी दिख जायेगा कि इस कानूनका विरोध आम लोग कर रहे हैं, या वह केवल दो या तीन भारतीयोंके प्रभावके कारण हो रहा है। भारतीय जीतके लिए जीत नहीं चाहते। उनके विरुद्ध चाहे कुछ भी कहा जाये, वे अपने-आपको केवल कानूनपालक कहते हैं। वे केवल यही चाहते हैं कि उनकी गम्भीर सत्परम्पराका सम्मान किया जाये। वे सरकारकी सहायता करना चाहते हैं; और वे अब भी सरकार से नम्रतापूर्वक निवेदन करना चाहते हैं, बशर्ते कि सरकार उनकी भावनाओंका अधिक खयाल करे।

[ अंग्रेजीसे ]
स्टार, ६-१-१९०८

७. भेंट : 'ट्रान्सवाल लीडर' को

[ जोहानिसबर्ग
जनवरी ६, १९०८]

'ट्रान्सवाल लीडर' के एक प्रतिनिधिने श्री गांधीसे कल भेंट की और पिछले शनिवारको मेविलमें जनरल स्मट्सने जो भाषण दिया था उसपर उनके विचार जानने चाहे।

श्री गांधी इस विषयपर विचार-विनिमयके लिए राजी हो गये और बोले :

इसे मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भारतीय जनरल स्मट्स या किसी दूसरे उपनिवेशवासीका विरोध नहीं करना चाहते और न वह सम्मानपूर्वक समझौते के रास्तेमें रोड़

१. जनवरी ४, १९०८। जनरल स्मट्सने अपने भाषण में निम्नलिखित बातें कहीं थीं : (१) श्री गांधीने यह दलील दी है कि एशियाई अधिनियम बर्ग-विधान है; "परन्तु यह विषय १८८५ से वर्ग-विधानकी तरह ही लिया गया है और भारतीय उसे मानते रहे हैं "; (२) "अधिनियम उन भारतीयोंको उपनिवेशसे खदेड़ देनेके लिए पास नहीं किया गया है जो यहाँ १०, १५ या २० बरसोंसे रहते चले आये हैं", बल्कि "वह उन एशियाइ- योंको, जो युद्धके पहले उपनिवेशमें थे, मान्यता देने के लिए." तथा "भविष्य में आव्रजन रोकनेके लिए " पास किया गया है; (३) “देशकी कोई भी संसद अधिनियमको रद करने की क्षमता नहीं रखती"; (४) ब्रिटिश सरकार हमारे साथ है और मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि वह ट्रान्सवालकी मदद आगे क्यों नहीं करती रहेगी; (५) यदि भारतीय कानूनको अंगीकार नहीं करते तो उन्हें उसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे। उन्हें परवाने देनेसे इनकार किया जा सकता है, जेलमें डाला जा सकता है अथवा वे सीमासे बाहर किये जा सकते हैं। भारतीयोंको उनके नेताओंने बरगलाया है और सरकारने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। यदि वे पंजीयनके लिए व्यक्तिगत ढंग से आनेके बजाय सामूहिक रूपसे आयें तो उन्हें अवसर दिया जायेगा। मगर ये सब बातें मेरी निजी राय हैं, सरकारकी नहीं।