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भाषण: सार्वजनिक सभामें

बात कर दिखानेमें हमारी सहायता की है। मैं समझता हूँ, आज सारे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय एक नई भावनासे अनुप्राणित हो उठे हैं, और यदि यह भावना कायम रही तो, मेरा खयाल है, हमें इसके लिए भी सरकारको धन्यवाद देना पड़ेगा। जब पिछली जनवरीमें हमने सच्चे रूपमें अनाक्रामक प्रतिरोधका संघर्ष प्रारम्भ किया था, तो उसकी तैयारी लगभग १६ महीनेसे होती आ रही थी। किन्तु, जनरल स्मट्स और उनके सहमन्त्री एशियाई अधिनियमके विरुद्ध, जिसे भारतीय, सही या गलत, अपने आत्मसम्मान, प्रतिष्ठा तथा धर्मपर एक आघात मानते थे, उनके आन्दोलनमें निहित भावनाकी सच्चाईकी परख गत जनवरी महीनेमें ही कर पाये। लेकिन, अभी सारी बातोंको अन्तिम पुट देना शेष ही था कि समझौते के कारण कैदियोंको एकाएक छोड़ दिया गया। मैं समझता हूँ कि अब इस अवसरपर सारी बातोंको वही अन्तिम पुट दिया जा रहा है। स्पष्ट है, जनरल स्मट्सको हमारे शिविरमें रहनेवाले कुछ शत्रुओंने ही बताया है कि हमारा पिछले सालका और जनवरी महीनेका आन्दोलन अधिकांशतः बनावटी था, और उस अग्निको प्रज्वलित रखनेवाला मुख्य रूपसे मैं था। मेरा खयाल है कि अबतक जनरल स्मट्स समझ गये होंगे कि आन्दोलन बनावटी नहीं था। वह सर्वथा सच्चा तथा स्वयंस्फूर्त था, और यदि मेरा उसमें कोई हिस्सा था तो इतना ही कि मैंने सरकार तथा अपने देशभाइयोंके बीच एक नम्र दुभाषियेका काम किया। निःसन्देह, मैं पहला व्यक्ति था जिसने समाजको बताया कि कानूनका अर्थ क्या है। इसमें भी कोई शक नहीं कि सबसे पहले मैंने ही समाजका ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि यह कानून धार्मिक तथा समाजके सम्मानसे सम्बन्धित आपत्तियोंसे भरा पड़ा है। परन्तु, इतना कुछ करनेके बाद मैं दावा करता हूँ कि मैंने अपना हर फर्ज पूरा कर लिया। मैंने भारतीयोंके सामने जो आपत्तियाँ रखी, उनके महत्त्वको स्वयं उन्होंने ही पहचाना, और निष्ठापूर्वक तथा हृदयसे उस कानूनको न माननेका निश्चय किया। और आज हम यहाँ उन्हीं आपत्तियोंपर जोर देनेके लिए एकत्र हुए हैं और यह भी देखते हैं कि हमारे दक्षिण आफ्रिकावासी देशभाइयोंमें से एक श्रेष्ठ व्यक्तिने---हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके समादृत अध्यक्ष महोदयने---स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र लेनेके बदलेमें प्राप्त स्वतन्त्रताका उपभोग करनेके बजाय जेल जाना अच्छा समझा है। उन्होंने अपने निम्नतर देशभाइयों अर्थात् फेरीवालोंके साथ कष्ट झेलना पसन्द किया, और महसूस किया कि भारतके सम्मानके लिए, स्वयं फेरीवालोंकी खातिर अपने-आपको उनके ही दर्जेमें रखकर जेलके दुःख भोगें, जिनको सरकार अपनी जकड़में लेना चाहती है। और आज हम अपने उस प्यारे देशभाई तथा उन लोगोंके प्रति सम्मान प्रकट करनेके लिए एकत्र हुए हैं, जो उनके साथ जेल-जीवनके कष्ट झेलने गये हैं। यह सच है कि कैद केवल चार दिनोंकी है, लेकिन बात इतनी ही तो नहीं है। भारतीय ऐसे जीवनके आदी नहीं हैं। वे [जेल] जीवनकी कठिनाइयोंके अनुकूल अपनेको कभी ढाल नहीं पाये हैं। उनके लिए एक दिनकी कैद भी बड़ी बात है। और फिर क्या इस तरहके मामलोंमें भावनाका भी बहुत महत्त्व नहीं होता? हम तथा यूरोपीय उपनिवेशी इस बातको सदासे जानते आये हैं कि भारतीय जेल जाने के बजाय जुर्मानेमें बड़ी-बड़ी रकमें दे देना पसन्द करते हैं। दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंपर भी सर्वसामान्य रूपसे यही बात लागू होती है, और फिर भी यदि आज हम हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके समादृत अध्यक्ष महोदय तथा अन्य प्रमुख भारतीयोंको खुशी-खुशी जेल जाते देखते हैं, तो इसलिए नहीं कि कोई बनावटी आन्दोलन चल रहा है, बल्कि इसलिए कि वे सोचते