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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होता है कि, अगर ट्रान्सवाल तथा दक्षिण आफ्रिकाके नागरिकोंकी नजरोंमें नहीं तो, पुलिसकी नजरोंमें हम कितने तुच्छ हैं। तब ब्रिटिश भारतीयोंके लिए आवश्यक है कि शान्तिपूर्वक और शोभनीय ढंगसे, धैर्यपूर्वक तथा सर्वथा कानूनी तरीकेसे यह दिखा दें कि वे यहाँ ऐसे अपमान सहन करनेके लिए नहीं हैं, अपनी स्वतन्त्रताको पदमर्दित होते देखनेके लिए नहीं हैं। और यदि ये सारी बातें महामहिम सम्राट्के नामपर की जाती हैं तो हम भी यहाँ उनका विनम्र विरोध करनेके लिए, सारी दुनियाको यह दिखा देनेके लिए तैयार हैं कि ब्रिटिश साम्राज्यमें भी, ब्रिटिश झंडेके नीचे भी, क्या-कुछ घटित होना सम्भव है। हमारा लालन-पालन ब्रिटिश परम्पराओंके बीच हुआ है। हमें बताया गया है कि ब्रिटिश साम्राज्यमें एक मेमना भी स्वतन्त्र है। बाघ और बकरीको एक घाट पानी पिलाया जाता है", यह एक पद्यका शब्दानुवाद है जो मुझे बचपनमें ही, जब मैं स्कूल जानेकी उम्रका था, पढ़ाया गया था। मैं अबतक उस पद्यको नहीं भूल सका हूँ। मैं कहता हूँ, अब ऐसी बातें सम्भव नहीं हैं कि ब्रिटिश भारतीयोंपर कोई सिर्फ इसलिए थूके, उनके साथ मात्र इसलिए दुर्व्यवहार करे कि वे सीधे-सादे हैं, विनम्र हैं और किसी दूसरेके अधिकारपर हाथ नहीं डालते। और अब हमें उस एशियाई अध्यादेशके विरुद्ध लड़ना है, जिसका मंशा हमें अपनी रही-सही प्रतिष्ठासे भी वंचित कर देना है। हम इन बातोंको महसूस करते हैं, इसीलिए आज अपने जेल जानेवाले देशभाइयोंका सम्मान करने एकत्र हुए हैं ताकि यहाँ उपस्थित भाइयोंको भी इससे इतना साहस मिले, उनमें इतना अधिक आत्म-सम्मानका भाव जगे कि वे जेल जा सकें, वैसे ही कष्ट झेल सकें। और यदि आपने ऐसा किया तो [ समझ लीजिए कि ] जितनी निश्चित यह बात है कि मैं यहाँ खड़ा हूँ उतना ही निश्चित यह भी है कि एक दिन ऐसा आयेगा जब हम अपनी स्वतन्त्रता पुनः प्राप्त करेंगे, जब ब्रिटिश नागरिकताके साथ जुड़े समस्त अधिकार हमें फिर मिलेंगे, जब ट्रान्सवालमें भी हम मनुष्यके रूपमें मनुष्यकी तरह सम्मानित होंगे, और हमारे साथ कुत्तोंका-सा बर्ताव नहीं किया जायेगा।[१]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-८-१९०८
 
  1. इसके बाद गांधीजीने दूसरा भाषण गुजरातीमें किया जिसका पाठ उपलब्ध नहीं है।