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२३७. सोराबजी शापुरजी अडाजानिया

श्री सोराबजी शापुरजी अडाजानियाको एक मासका सपरिश्रम कारावास मिला है।[१] इसे हम सोराबजीका सम्मान मानते हैं। ऐसा समय नजदीक आता चला जा रहा है जब यह जाननेके लिए कि अमुक भारतीयके पास कितनी उपाधियाँ हैं, यह पूछा जायेगा कि वह देशके लिए कितनी बार जेल गया है। अन्य मामलोंकी अपेक्षा श्री सोराबजीका मामला भिन्न है और उन्हें अधिक सम्मान देनेवाला है। जेल जानेवाले भारतीयोंके मामलोंमें दूसरोंके अधिकारोंके साथ-साथ उनके भी हकोंका समावेश रहा करता था। वे ट्रान्सवालके निवासी थे; श्री सोराबजी ट्रान्सवालके निवासी नहीं हैं। उन्हें अपना निजी कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं करना है। श्री सोराबजी केवल देशके ही लिए---विशेषतया शिक्षित भारतीयोंके लिए---जेल गये हैं। दूसरे भारतीयोंको कठिन कारावास नहीं दिया गया था; श्री सोराबजीको कठिन कारावासकी सजा हुई है। इन सब कारणोंसे श्री सोराबजी तथा उनके कुटुम्बीजनोंको साधुवाद देना उचित है। श्री सोराबजीको सच्चा मुबारकबाद देना तो यही होगा कि भारतीय दृढ़ बने रहें और वे जिस उद्देश्यको लेकर जेल गये हैं उसको सफल बनायें। उनके पीछे अन्य भारतीय भी जेल जायें। इसीका नाम सच्चा मुबारकबाद है।

श्री सोराबजीके तथा उनके कुटुम्बीजनोंके प्रति हम समवेदना प्रकट नहीं करते। कारावास हमारे नसीबमें है। उसमें हमारी स्वतन्त्रताका बीज है, इसलिए जेल जानेवालोंके प्रति समवेदना प्रकट करनेकी जरूरत नहीं रह जाती।

कारावासके कष्टको सुख मानना चाहिए। जब इस प्रकारका साहस और ऐसे विचार हममें भर जायेंगे तब ही जो करना है सो कर सकेंगे।

श्री सोराबजीका चित्र इस अंकके साथ दिया जा रहा है। श्री सोराबजीके साहसकी सराहना सभी करेंगे। मात्र संग्रामके [ सुखके ] लिए ही मैदानमें उतरनेवाले बिरले ही होते हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-७-१९०८
 
  1. देखिए "सोराबजी शापुरजीका मुकदमा---३", पृष्ठ ३७०-७१