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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रखा है, अपने नामके अनुरूप उन पत्तोंको खेलेगा या ब्रिटिश भारतीयोंको बेसहारा छोड़ देगा। जैसा कि आप जानते हैं, सर पर्सी फिट्ज़पैट्रिक, श्री चैपलिन तथा श्री लिड्सेने उस बैठकमें, जिसमें आप भी उपस्थित थे, इस तर्कको उचित माना था कि जिन लोगोंने हालके समझौतेके बाद फिरसे प्रवेश किया है और जिन्हें वैसा करनेका अधिकार है, उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए जैसा उन लोगोंके साथ होता है जो उस तारीखको ट्रान्सवालमें थे, और यह भी कि युद्धसे पूर्वके निवासियोंके अधिकारोंको भी स्वीकार कर लेना चाहिए। अब मेरे सामने जो विधेयक है वह इन सब बातोंपर पानी फेर देता है। यह विधेयक बहुत चतुराई भरा है; किन्तु, यदि आप मुझे कहने की अनुमति दें तो, यह एक धोखेबाजीसे भरा हुआ विधेयक भी है। इसके बलपर जनरल स्मट्स यह कह सकेंगे कि वे उन अधिकारोंको नहीं छीनते जो, वे दावा करते हैं, एशियाई कानून द्वारा सुरक्षित कर दिये गये हैं। धोखा यहीं पर है; क्योंकि वे बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि एशियाई उस अधिनियमके अन्तर्गत कोई लाभ प्राप्त करना नहीं चाहते।

मैं आपको उस पत्रकी[१] नकल भेज रहा हूँ जो मैं प्रगतिवादी दलके मुख्य सदस्योंको लिख रहा हूँ।

आपका सच्चा,

श्री अल्बर्ट कार्टराइट
प्रिटोरिया क्लब
प्रिटोरिया

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४८५२) से।

२४३. चैपलिनके नाम पत्रका सारांश[२]

जुलाई २७, १९०८

...श्री गांधीने श्री चैपलिनको एक और पत्र लिखा है। उसमें वैधीकरण विधेयकके मसविदेके अपर्याप्त होनेकी शिकायत है। प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम संशोधन विधेयकका उल्लेख भी है जिसपर बातचीत करनेको वे प्रिटोरिया बुलाये गये थे और जिसे जनरल स्मट्सने प्रकाशित कराया है। वे अपने इस मूल सुझावको मान लेनेका आग्रह करते हैं कि वैधीकरण प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके संशोधनसे ही हो।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफिस, ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ३७२२/०८।

 
  1. उपलब्ध नहीं है।
  2. यह अंश ट्रान्सवालकी घटनाओंके उस संक्षिप्त विवरणमें से लिया गया है जो रिचने अपने ६ अक्तूबर, १९०८ के पत्रके साथ उपनिवेश-कार्यालयको भेजा था।