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२४५. हरिलाल गांधी तथा अन्य लोगोंका मुकदमा

[ जोहानिसबर्ग
जुलाई २८, १९०८ ]

कल ( जुलाई २८ को ) श्री पी० सी० डालमाहॉयके सामने 'डी' अदालतमें छः और भारतीय फेरीवाले[१] पेश हुए। उनपर परवानेके बिना फेरी लगानेका अभियोग लगाया गया था। इनमें थम्बी नायडू और हरिलाल गांधी भी शामिल थे। श्री नायडू पिछली जनवरीमें श्री गांधीके साथ जेल गये थे। उन्हें बिना परवाना फेरी लगानेके कारण पिछले सप्ताह मंगलवारको भी ४ दिनकी कैदकी सजा हुई थी। हरिलाल गांधी श्री मो० क० गांधीके सबसे बड़े पुत्र हैं। कुछ दिन पहले उन्हें [ पंजीयन न करानेके कारण ] फोक्सरस्टमें गिरफ्तार किया गया था और प्रिटोरियामें हाजिर होकर पंजीयन प्रमाणपत्रके[२] लिए दरख्वास्त करनेकी चेतावनी दी गई थी। इसके बाद युवा गांधी जोहानिसबर्ग गये और उन्होंने तुरन्त ही फलोंकी फेरी लगाना शुरू कर दिया। ऐसे मौकेपर वे गिरफ्तार कर लिये गये।

श्री कैमर सरकारी वकील थे, और बचाव पक्षकी पैरवी श्री गांधीने की।

पहला व्यक्ति जिसपर अभियोग लगाया गया, हीरा मारीजी नामक एक भारतीय था।

अभियुक्त नगरपालिका क्षेत्रमें बिना परवाना फेरी लगानेके सम्बन्धमें रस्मी गवाही दी गई। अभियुक्तने अपराध स्वीकार कर लिया और उसे एक पौंड जुर्माने या सात दिनकी सख्त कैद की सजा दी गई। इसके बाद (श्री मो० क० गांधीके पुत्र) हरिलाल मोहनदास गांधी, थम्बी नायडू और गोविन्दस्वामी कृष्णस्वामीको कटघरेमें उपस्थित किया गया। उन सभीको भारतीय फेरीवाले बताया गया। उन्होंने अपराध स्वीकार किया।

पुलिसके एक सार्जेटने बयान दिया कि उसने इन अभियुक्तोंको गिरफ्तार किया था। ये ईस्ट बेलव्यूमें बिना परवानाके फलोंकी फेरी लगा रहे थे।

श्री गांधीने कहा कि मैं गवाह नहीं बुलाना चाहता, लेकिन कुछ कहना चाहता हूँ। कल मैंने सजामें वृद्धिके विरुद्ध आपत्ति करनेकी कमजोरी दिखाई थी,[३] परन्तु इस बार जेलमें कैदियोंके साथ मेरा लम्बा वार्तालाप हुआ है और मुझसे कठोरतम दण्डकी माँग करनेका अनुरोध किया गया है। अभियुक्तोंने जो-कुछ किया है, वह जान-बूझकर किया है। नायडूको बिना परवाना फेरी लगानेके कारण चार दिनको कैदको सजा हुई थी और वे पिछले सप्ताह जेलमें रहे थे।

 
  1. नायडू, हरिलाल गांधी, हीरा मारीजी ( इंडियन ओपिनियनमें "मावजी" छपा है ), कृष्णस्वामी, पिल्ले और नायकर। इंडियन ओपिनियनमें एक चार्ली सिंगलीका भी उल्लेख है, जिनपर इसी प्रकारका अभियोग लगाया गया था और सजा हुई थी।
  2. २८-७-१९०८ के ट्रान्सवाल लीडरमें इस बातका उल्लेख है कि गांधीजीने एशियाई पंजीयकको लिखा था कि उनका पुत्र प्रिटोरियामें पंजीयन प्रमाणपत्रके लिए दरख्वास्त करनेका इरादा नहीं रखता है। यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
  3. देखिए "रामस्वामी तथा अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ ३९९-४००।
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