मजिस्ट्रेट: नायडूको पहले भी सजा हो चुकी है।
श्री गांधी: इस कानूनके अन्तर्गत इससे पहले दो बार सज़ा पा चुके हैं; एक बार बिना परवानाके फेरी लगानेके कारण।
श्री गांधीने आगे कहा कि अन्य दोनों व्यक्तियोंने भी मुझसे कठोर दण्ड माँगनेको कहा है। अगर हलकी सजा दी गई तो जैसे ही वे बाहर आयेंगे, उनका इरादा फिर वही काम दुहरानेका है। उन्हें लम्बी सजा देनेसे समयकी बचत होगी और उनके स्वास्थ्यके लिए भी लगातार लम्बी कंद अच्छी होगी।
नायडूको २ पौंड जुर्माने या १४ दिनकी सख्त कैदकी सजा दी गई और (हरिलाल) गांधी तथा कृष्णस्वामीको एक-एक पौंड जुर्माने या बदलेमें सात-सात दिनकी सख्त कैदकी सजा हुई।
इसके बाद अन्य दो ब्रिटिश भारतीयोंपर जिनके नाम सिन्नप्पा रंगस्वामी पिल्ले तथा सूप वीरस्वामी नायकर हैं, अभियोग लगाया गया।
उन्होंने अपराध स्वीकार किया, और उन्हें १-१ पौंड जुर्माने या सात-सात दिनकी सख्त कैदकी सजा दी गई।
प्रत्येक अभियुक्तने जेल जाना पसन्द किया।
ट्रान्सवाल लीडर, २९-७-१९०८
२४६. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
जेल जानेवालोंका सम्मान
इमाम अब्दुल कादिर बावजीर तथा उन अन्य सत्याग्रहियोंमें से, जिन्हें चार दिनकी जेलकी सजा मिली थी, कुछ शुक्रवारको और शेष शनिवारको[१] छूट कर आ गये हैं। जो शुक्रवारको छूटकर आये, वे उस दिन नहीं छूटेंगे, इस भूलमें कोई उन्हें लेने नहीं गया।
जब शनिवारको छूटने वालोंको लेने गये तब मालूम हुआ कि यद्यपि उन्हें नियमके मुताबिक ९ बजे रिहा किया जाना था, वे ७ बजे छोड़ दिये गये थे। मंशा यह था कि इनसे मिलनेके लिए जुलूस न आये। किन्तु श्री कुवाड़िया[२] जल्दी जेलकी तरफ घूमने निकल पड़े थे, इसलिए जेलसे छूटे हुए लोग उन्हें मिल गये। उन्होंने उनका स्वागत किया और वे उन्हें फिरसे जेलकी तरफ ले गये। तबतक अन्य भारतीय भी आ पहुँचे, जिनमें श्री ईसप मियाँ, मौलवी मुख्तियार साहब, श्री उस्मान अहमद एफेंदी, श्री कैलनबैक, श्री पोलक, श्री डोक वगैरह थे। इमाम साहब तथा अन्य लोगोंने फूलके हारोंसे उनका स्वागत किया और बादमें सब लोग श्री ईसप मियाँके यहाँ गये। वहाँ श्री ईसप मियाँने सबको चाय-बिस्कुटका नाश्ता