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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

इमाम साहब वगैराके पाँव सुन्न पड़ गये थे। इसके सिवाय और सब आराम था। चावल अपने ही हाथों पकाया जाता था और यह काम श्री नायडू करते थे। शरीर-श्रम कुछ विशेष नहीं था। एक जगहसे उठाकर दूसरी जगह कंकड़ ले जानेका काम सौंपा जाता है। इसलिए लोगोंमें उत्साह बना हुआ है और वे जेलको कुछ नहीं गिनते। मेरी अपनी तो सलाह है कि पुपु खानेकी आदत डाल लेनी चाहिए। यह फायदेमन्द है। जिसे अपना शत्रु मानते हैं उससे दयाकी भीख माँगना बिलकुल शोभा नहीं देता। फिर भी जबतक भारतीयोंमें इतना सहन करनेकी शक्ति नहीं आती, तबतक हम माँग करते रहेंगे।

सोराबजीकी स्थिति

जेलसे लौटनेवाले समाचार लाये थे कि श्री सोराबजी पहले दो-चार दिन जरा उदास रहे। किन्तु संग-साथ मिल जानेके बाद अब वे प्रसन्न हैं। उनमें उत्साह है। श्री सोराबजीको कुर्तीमें बटन लगानेका काम सौंपा गया है।

सारे कैदियोंपर जेलके निरीक्षक तथा हेड वॉर्डन काफी ममता रखते हैं।

गोरोंकी सहानुभूति

श्री लिटमन ब्राउनने पहले भी भारतीयोंको १० पौंडकी मदद दी थी। इस वार फिरसे उसी तरह सहानुभूतिका पत्र लिखकर उन्होंने १० गिनीका चेक संघर्षमें मदद करनेके खयालसे भेजा है और हमारी जीतकी कामना की है। हमें ऐसे गोरोंका आभार मानना चाहिए। संघकी ओरसे उनके नाम आभारपत्र गया है। श्री लिटमन ब्राउन जोहानिसबर्गके एक गोरे व्यापारी हैं। भारतीय कौम उनकी जितनी प्रशंसा करे, उतनी थोड़ी है।

वेरीनिगिंगसे २५ पौंड, यहाँके खत्री समाजकी तरफसे ९ पौंड १० शिलिंग, भारतीय बाजारकी तरफसे ७ पौंड १५ शिलिंग और रूडीपूर्टसे ५ पौंड मिले हैं। इस समय पैसेकी बहुत जरूरत है और आशा है कि सभी जगहोंसे संघको सहायता मिलेगी।

कोंकणी समाजकी सभा

गत रविवारको सार्वजनिक सभाके पहले कोंकणी समाजकी भी सभा हुई थी। उसमें बहुत-से कोंकणी बन्धु उपस्थित थे। श्री अब्दुल गनी अध्यक्ष थे। सबने बड़ा जोश प्रकट किया। बहुतसे कोंकणी भाई फेरीके लिए निकलनेको तैयार हुए और परवाने तथा पैसे इकट्ठा करनेका निश्चय हुआ।

कानमिया कौमने भी अपने समाजकी सभा करके बहुत उत्साह दिखाया है।

बड़े दुःखकी बात

मैं लिख चुका था कि बॉक्सबर्गके श्री आदम मूसा जेल गये हैं।[१] किन्तु बादमें खबर मिली कि उक्त भाई साहबने जुर्माना दे दिया है। अर्थात् यह भी (अ) मंगलसिंहकी[२] श्रेणीमें आ गये। ऐसे भारतीय तो समाजके दुश्मन हैं। यदि पहले से ही कह दिया जाये कि हमें जेल नहीं जाना है, तो यह सहा जा सकता है; किन्तु जानेकी बात कहकर न जाना तो बहुत बुरा है।

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी ", पृष्ठ ३८५।
  2. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी ", पृष्ठ ३८५।