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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रतनजी लल्लूका मामला

रतनजी लल्लू नामक एक भारतीय लड़का है। वह अपने चाचाके साथ आया।[१] उसके पिताके पास अनुमतिपत्र था; किन्तु वह मूर्ख था, इसलिए मोम्बासामें रुक गया। रतनजी अकेला दाखिल हुआ। वह पकड़ा गया और उसे सजा हुई। अपीलमें अदालतने फैसला दिया कि रतनजीको जो सजा दी गई सो ठीक थी। निश्चित हुआ कि लड़का बापके साथ ही आ सकता है। इसके अतिरिक्त मामलेके अन्य तथ्योंपर ध्यान देना इस समय आवश्यक नहीं है। किन्तु ऊपरके मामलेका यह अर्थ हुआ कि बापकी गैरहाजिरीमें लड़का अकेला नहीं आ सकता।

क्रूगर्सडॉर्पके भारतीय

यहाँके समाचारपत्रोंमें खबर है कि क्रूगर्सडॉर्पमें फेरीवालोंने बस्तीमें सभा की। उसमें यह प्रस्ताव किया गया कि सरकार जो करे, सो स्वीकार किया जाये। यह बड़े दुःखकी बात है कि समाजके ऐसे दुश्मन भी पड़े हुए हैं। श्री खुर्शेदजी देसाईने मुझे जो पत्र लिखा है उससे जान पड़ता है कि ऐसा कहनेवाले भारतीय अधिक नहीं हैं, तीन-चार व्यक्ति ही हैं। मुझे भी यह आशा है कि ऐसी नासमझीका बर्ताव करनेवाले भारतीय कहीं भी अधिक नहीं होंगे।

अब क्या होगा?

इस प्रश्नका उत्तर कठिन है। किन्तु यह तो कहा जा सकता है कि इसका उत्तर हमारे ही हाथमें है। यदि हमारी शक्ति कम हो तो संघर्ष लम्बा चल सकता है। इतना लम्बा चला, इसके कारण भी हम ही हैं। जोहानिसबर्गमें बहुत-से भारतीय परवाने ले आये और सरकारको परवाना शुल्क मिल गया। लगभग १०० व्यक्तियोंसे शुल्क नहीं मिला। इसलिए सरकार उतने परवानोंके शुल्कको जाने देकर सम्भव है ६ महीने तक कुछ न करें; सो इसलिए कि इस बीचमें भारतीय थक कर बैठ जायेंगे। मेरे विचारके अनुसार तो हमारी शक्ति बढ़नी चाहिए। यदि परवानोंके कारण किसीको गिरफ्तार न किया जाये, तो भी चिन्ताकी कोई बात नहीं है। किन्तु यह बात ऐसा ही व्यक्ति सोच सकता है जो सदा अत्याचारके मुकाबलेमें खड़ा होनेके लिए तत्पर हो, सदा कानूनका विरोध करनेके लिए तैयार हो।

यदि सरकार ऊपर लिखे अनुसार बरताव करे, तो उसके मनमें यह बात भी होनी चाहिए कि बाहरसे शरणार्थी आयेंगे ही नहीं और जो अनुमतिपत्रवाले बाहर हैं, वे आनेके बाद खूनी कानून स्वीकार कर लेंगे।

इसकी कुंजी

इसकी कुंजी हमारे पास है। फेरीवालोंको और दुकानदारोंको बिना परवानोंके काम चलाना चाहिए। परवाने पूछे जानेपर न दिखाये जायें। यदि सरकार कोई ऐसा कानून लागू करे, जो हमें पसन्द नहीं आता, तो प्रमाणपत्र और परवाने तुरन्त जलाये जायें और (१) जिनके पास डच कालके अपने नामसे अनुमतिपत्र मौजूद हैं; (२) जो इस बातके मजबूत प्रमाण दे सकते हैं कि वे युद्धके पहलेसे ट्रान्सवालके निवासी हैं; और (३) जिन्होंने अच्छी तरह अंग्रेजी

 
  1. देखिए "पत्र: इंडियन ओपिनियनको", पृष्ठ ३९१-९२।