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२४८. इमाम अब्दुल कादिर बावजीर

इस अंकके साथ [ परिशिष्टके रूपमें ] हम इमाम साहबकी तसवीर छाप रहे हैं। इमाम साहबके लिए दक्षिण आफ्रिका भरमें दुकानें बन्द हुईं[१], इससे सारे भारतीय समाजका गौरव बढ़ा है। यह मान श्री बावजीरका नहीं है, बल्कि हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके अध्यक्षकी गद्दीका है, हमीदिया मस्जिदके पेश-इमामका है। हमीदिया अंजुमनने जो कीमती सेवाएँ की हैं, वे प्रसिद्ध हैं और श्री बावजीरने उसमें जो काम किया है उसे भी सब जानते हैं। अंजुमनके अध्यक्षकी गद्दी श्री बावजीरके हाथमें सत्याग्रहकी असली लड़ाई शुरू हुई तब गई। उसे उन्होंने कितनी कठिनाइयाँ उठाकर सँभाला है, इसे वही समझ सकता है जिसने लड़ाई जानी है। इसलिए श्री बावजीरको जो मान मिला है उसके वे हरएक दृष्टिसे लायक हैं। वे अभी फिर जेल जानेका विचार रखते हैं। हम कामना करते हैं कि उनकी यह इच्छा पूरी हो। हम यह नहीं मानते कि जेल जानेकी इच्छा करना बुरा है। हमारी निश्चित राय है कि जेल जाना ही सीधेसे-सीधा रास्ता है।

श्री बावजीर अरबके एक प्रतिष्ठित परिवारके हैं। उनके पिता अरब छोड़कर अनेक वर्षोंसे हिन्दुस्तानमें रह रहे हैं। वे बम्बईमें जुमा मस्जिदके पेश-इमाम हैं। श्री बावजीरकी माँ कोंकणी हैं। श्री बावजीर कई वर्षोंसे दक्षिण आफ्रिकामें हैं। उन्होंने अपना विवाह भी इसी देशमें किया है। हम खुदासे प्रार्थना करते हैं कि उनका मन हमेशा देश-प्रेमकी भावना से रँगा रहे और वे हमेशा देश और कौमकी प्रतिष्ठाके लिए परिश्रम करते रहें।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-८-१९०८

२४९. महान तिलकको सजा[२]

देशभक्त श्री तिलकको जो सजा दी गई है वह बहुत कष्ट पहुँचानेवाली है। हम ६ वर्षके देश-निकालेका विचार करते हैं, तो उसके सामने ट्रान्सवालके भारतीयोंका कुछ दिन जेल भोगकर चले आना कुछ भी नहीं जान पड़ता।

यह सजा जितनी दुःख पहुँचानेवाली है, उतनी आश्चर्यजनक नहीं। उससे दुःखी भी नहीं होना चाहिए।

 
  1. हड़ताल २३ जुलाईको हुईं थी। देखिए "भाषण: सार्वजनिक सभामें", पृष्ठ ३८६।
  2. मुजफ्फरपुर-कांड (देखिए पृष्ठ २१६) के थोड़े ही दिन बाद तिलकने अपनी पत्रिका केसरीमें दो लेख लिखे, जिनमें उन्होंने बंगालके क्रान्तिकारी दलके उत्साहकी प्रशंसा की थी, यद्यपि हिंसात्मक तरीकोंसे सहमति नहीं प्रकट की थी। उन्होंने स्वराज्यको समस्याका एक मात्र समाधान बताया। उन्होंने सरकारको पत्रकारिता-कानूनके द्वारा जनमतको दबानेके विरुद्ध भी चेतावनी दी। २४ जूनको उन्हें अपने दोनों लेखोंके लिए दो अलग-अलग वारंटोंके अनुसार गिरफ्तार कर लिया गया और उनपर राजद्रोहका अभियोग लगाया गया। जूरीने उन्हें दोके मुकाबले सात मतोंसे दोषी ठहराया और न्यायालयने उन्हें छः सालकी देश-निकालेकी सजा दी। जूरीमें बहुमत एँग्लो-इंडियनोंका था और जिन दो सदस्योंने विरुद्ध मत दिया वे भारतीय थे।