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महान तिलककी सजा

हम जिस राज्यका मुकाबला करना चाहते हैं, वह हमारे ऊपर अत्याचार करे तो इसमें विचित्र कुछ भी नहीं है। श्री तिलक ऐसे महान पुरुष हैं, इतने विद्वान हैं कि उनके कार्यके बारेमें इस देशमें हमारा कुछ लिखना धृष्टता मानी जायेगी। उन्होंने देशके लिए जो कष्ट उठाया है उसके लिए वे पूजने योग्य हैं। उनकी सादगी बड़ी जबरदस्त है। उनकी विद्वत्ताका प्रकाश यूरोपमें भी खिल रहा है।

फिर भी हम जिन्हें बड़ा मानते हैं उनका पक्ष हमें आँख बन्द करके नहीं लेना है। श्री तिलकके लेखोंमें कटुता नहीं थी, ऐसा कहना अथवा ऐसा बचाव पेश करना तिलकके ऊपर कलंक लगाने जैसा है। तीखे, कड़वे और मर्मभेदी लेख लिखना उनका उद्देश्य था। अंग्रेजी राज्यके खिलाफ भारतीयोंको उकसाना उनकी सीख थी। उसे ढाँकना श्री तिलककी महानतामें त्रुटि दिखाने जैसी बात है।

ऐसे लेख लिखनेवालेको राज्यकर्ता सजा दें, यदि यह उनकी दृष्टिसे देखा जाये तो ठीक जान पड़ता है। यदि हम राज्य करनेवालोंके स्थानपर होते, तो अन्यथा न करते। इसे ध्यानमें रखते हुए राज्यकर्ताओंके ऊपर क्रोध करनेकी कोई बात नहीं बचती।

श्री तिलक मुबारकबादके योग्य हैं। उन्होंने जबरदस्त कष्ट उठाकर अमरत्व पाया है और भारतकी स्वतन्त्रताकी नींव डाली है।

श्री तिलककी सजासे प्रजा निराश होनेके बदले, डरनेके बदले, यदि आनन्द मानकर बहादुरीसे रहेगी, तो सजा लाभकारी होगी। हमें इतना ही विचार करना बाकी है कि श्री तिलक और उनके पक्ष विचार भारतीयोंके लिए मान्य करने योग्य हैं अथवा नहीं। हम बहुत विचारपूर्वक लिख रहे हैं कि श्री तिलकके विचार मान्य करने योग्य नहीं हैं।

अंग्रेजी राज्यको उखाड़नेमें ही भारतीयोंका भला नहीं है। अंग्रेजी राज्यको उखाड़नेमें शक्तिका उपयोग करना, हिंसा करना नुकसानदेह है और अनावश्यक है। हिंसासे मिली हुई मुक्ति टिकनेवाली नहीं और यूरोपकी प्रजा उससे जो नुकसान उठाती है, वह हमें भी उठाना पड़ेगा। लोग एक गुलामीमें से दूसरी गुलामीमें चले जायेंगे। परिणाम होगा, लाभ किसीको नहीं, और नुकसान सबको।

हमारी मान्यता है कि अंग्रेजी राज्यको अच्छा बनानेका सहज रास्ता सत्याग्रह है। और यदि वह राज्य अत्याचारी बन जाये, तो सत्याग्रहका मुकाबला करनेमें एकदम नष्ट हो जायेगा। जिन मजदूरोंने श्री तिलकको सजा होनेपर काम बन्द कर दिया है, वे ही मजदूर यदि सत्याग्रही बन जायें, तो उतने ही लोग सरकारसे उचित ढंगसे जो माँगें मिल सकता है।

इस स्थितिमें हमारा बरताव कैसा होना चाहिए? श्री तिलक और ऐसे अन्य महान भारतीयोंको अपनेसे अलग विचारके होनेके बावजूद हमें हीरा मानना चाहिए और उनके कष्ट सहन करनेकी शक्तिका अनुकरण करना चाहिए। वे देशभक्त हैं ऐसा समझकर उन्हें जितना मान दिया जाये, उतना थोड़ा है, यह भी मानना चाहिए और उसके अनुसार आचरण करना चाहिए। उनका और हमारा हेतु एक ही है; वह यह कि देशकी सेवा करें, देशको खुशहाल बनायें। ऐसा करनेके लिए वे जो कुछ करते हैं उससे मिलान करनेपर हमारा काम तनिक भी मुश्किल नहीं है। किन्तु हमारे कामका परिणाम उससे हजार दर्जे बढ़कर है यह हमारा दृढ़ निश्चय है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-८-१९०८