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२५०. केपके भारतीयोंमें झगड़े[१]

केपमें दो मण्डल हैं। वे आपसमें झगड़ते रहते हैं। उनके इन झगड़ोंकी खबर समय-समयपर हम अंग्रेजी अखबारोंमें भी देखते हैं। हम इन दोनों मण्डलोंको यह सूचना देना चाहते हैं कि इस देशमें आपसमें लड़नेके लिए हमारे पास समय नहीं है। हम ऐसे ही लड़ते रहे तो कोई तीसरा हमें खा जायेगा और हमारी हालत ज्यादा दीन-हीन हो जायेगी। झगड़ोंका कारण शायद बिलकुल ही छोटा होगा। सारी भारतीय कौमके नेता कहे जानेके बजाय कौमके सेवक कहे जानेकी ही इच्छा करें तो इस स्थितिमें बहुत सुधार हो सकता है। सेवक अधिकारोंका आग्रह नहीं करता। उसका ध्यान तो अपने कर्तव्यपर ही होता है। इसी तरह हम भी भारतीय समाजके सेवक होकर अपना कर्तव्य पूरा कर सकते हैं। जो व्यक्ति केवल अपना कर्तव्य करते रहना चाहता है उसका किसीके साथ शायद ही झगड़ा होता है। इसी तरह, यदि केपके ये दोनों मण्डल कर्तव्य करनेमें लग जायें तो उनके झगड़े तुरन्त समाप्त हो जायें। मानकी अपेक्षा किये बिना दोनों मण्डलोंको कौमकी सेवा करनेका निश्चय कर लेना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-८-१९०८

२५१. तुर्किस्तान और संसद

अखबारोंमें खबरें देखनेको मिलती हैं कि तुर्किस्तानके युवक दल ( यंग पार्टी ) ने राज्यमें अनेक सुधार किये हैं। एक तारमें कहा गया है कि महामहिम सुल्तान द्वारा राज्य संविधानके नियम बनाये जानेसे प्रजा प्रसन्न हुई है और जगह-जगह उत्सव हो रहे हैं। तारमें यह भी कहा गया है कि कुछ ही समयमें तुर्किस्तानमें इंग्लैंडकी संसदकी तरह संसद बन जायेगी।

यदि यह खबर सच हो, तो इसे बहुत ही बड़ी खबर मानना चाहिए। यदि तुर्कीमें संसद बन जाये, तो वहाँ ऐसे व्यक्ति और उमराव हैं कि तुर्किस्तान यूरोपके बड़े राज्योंकी श्रेणीमें आ जायेगा और उसका नाम संसारमें रोशन होगा। तुर्किस्तान आज ऐसी जगह स्थित है कि वह सर्वोपरि बन सकता है।

संसारके प्रत्येक हिस्सेमें स्वराज्यका नारा सुनाई पड़ता रहता है। नारा लगानेवाले शायद ही समझते हों कि सच्चा स्वराज्य क्या है। ट्रान्सवालके संघर्षमें भारतीयोंका जितना सम्मान अन्तर्निहित है, उतना ही तुर्किस्तानका भी है। वह संघर्ष अन्ततक लड़ा जाये, यह मुसलमानोंका स्पष्ट कर्त्तव्य है। इसमें सहायता करना हिन्दुओंका भी कर्तव्य है, क्योंकि वे मुसलमानोंके सगे भाई हैं; एक ही भारतमाताके पुत्र हैं। दोनोंको मिलकर बिना मताधिकारके ट्रान्सवालमें स्वराज्य प्राप्त करना है और यह अवसर ऐसा है कि वह सहज ही प्राप्त हो सकता है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-८-१९०८
 
  1. देखिए "केपके भारतीयोंको सूचना", पृष्ठ १९८।