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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिरहमें ( अधीक्षक वरनॉनने कहा ) इस गिरफ्तारीको अंजाम देनेके लिए मुझे बृहस्पतिवारको हिदायतें मिली थीं। इस अभियुक्तकी तरह ट्रान्सवालमें बहुत-से लोग हैं जो इस नियमके अन्तर्गत पंजीकृत नहीं हैं---कमसे-कम २०० होंगे। मुझे आशा है कि इनके बारेमें मुझे शीघ्रातिशीघ्र हिदायतें मिलेंगी।

सफाईमें अभियुक्त बयान दिया कि मैं एक सामान्य आढ़तिया हूँ और ट्रान्सवालमें करीब नौ वर्षोंसे रह रहा हूँ। मैंने अपना अनुमतिपत्र और पंजीयन प्रमाणपत्र १९०३ में लिया था। गत वर्ष मैंने भारतकी यात्रा की और गत २५ मईको मैं ट्रान्सवाल वापस आया। पंजीयन अधिनियमके अन्तर्गत मैंने पंजीयन प्रमाणपत्रके लिए प्रार्थनापत्र नहीं भेजा और न मेरी ऐसी कोई इच्छा है। मेरे ऐसा करनेका कारण यह है कि गत जनवरीके समझौतेके अनुसार यह कानून रद हो जानेवाला है। मैं स्वेच्छया पंजीयनका प्रमाणपत्र लूँगा। परन्तु अनिवार्य पंजीयनका नहीं लूँगा।

जिरहमें [ उसने कहा ] समझौते की शर्तोंके बारेमें मुझे 'इंडियन ओपिनियन' के स्तम्भोंसे जानकारी हुई। मैं ब्रिटिश भारतीय संघका एक सदस्य हूँ।

अभियुक्तके विरुद्ध श्री कैमरने बिना परवानेके फेरी लगानेके कारण पहले दी गई एक सजाका उल्लेख किया। यह स्वीकार किया गया।

अदालतको सम्बोधित करते हुए श्री गांधीने कहा कि वास्तवमें मुझे इसके सिवा कुछ अधिक नहीं कहना है कि मुझे भय है, जबतक संघर्ष समाप्त न हो जायेगा तबतक ये बातें जारी रहेंगी। अभियुक्तको आज्ञा हुई है कि वह सात दिनके अन्दर यह देश छोड़ दे। वह इस आज्ञाको माननेसे इनकार करेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-८-१९०८

२५४. बारह फेरीवालोंका मुकदमा

[ जोहानिसबर्ग,
अगस्त ४, १९०८ ]

अदालत "डी" में तीसरे पहर श्री एच० एच० हॉपकिन्सके समक्ष १२ ब्रिटिश भारतीय फेरीवालोंपर बिना परवाना व्यापार करने या उसके बदलेमें अपनी व्यापारिक पेटियोंपर अपना नाम न लिखवानेके कारण अभियोग लगाया गया।

श्री शॉने अभियोग लगाया। श्री गांधीने अभियुक्तोंकी ओरसे पैरवी की।

लगभग सभी अभियुक्तोंने बयान दिया कि उन्होंने परवानेके लिए प्रार्थनापत्र दिये थे, परन्तु उनके प्रार्थनापत्र अस्वीकार कर दिये गये, क्योंकि वे अपने अँगूठोंके निशान देनेको राजी नहीं थे।