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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी



किनके परवाने अवैध हैं ?

कुछ भारतीय यहाँ रिक्शा रखते हैं। लगभग सत्तर रिक्शे भारतीयोंके पास होंगे। नगरपालिकाने ऐसे भारतीयोंके लिए अँगूठेकी छाप देना अनिवार्य किया था, इसलिए उनके नाम पिछले रविवारको नोटिस दिया गया कि गाड़ियोंका परवाना धन्धेका परवाना नहीं कहा जा सकता और इसलिए वह खूनी कानूनके अन्तर्गत नहीं आता। इसलिए यदि नगरपालिका बिना अँगूठेकी छाप माँगे रिक्शा आदिके परवाने न दे, तो नगरपालिकाको हर्जाना देना पड़ेगा। मैंने आज सुना है कि नगरपालिकाने उपर्युक्त शिकायत स्वीकार करके खूनी कानूनकी शर्तोंको पाले बिना रिक्शा आदिके लिए परवाने देना तय किया है। इस प्रकार जिन्हें परवाना मिल सकता हो, वे परवाना ले लें, किन्तु जेल जानेका कोई दूसरा उपाय सोचें। फिलहाल तो बिना परवाना लिये फेरी करना इसका उपाय है।

जेलमें खूराक

संघने पत्र लिखा था कि भारतीयोंको जेलमें पुपुकी जगह कोई दूसरी खुराक दी जाये,[१] उसका अभीतक उत्तर नहीं आया है। इससे सन्देह होता है कि सरकार हमें कायर बनाना चाहती है। सम्भव है सरकारको गलतफहमी हो जाये कि खुराकमें परिवर्तन न हुआ तो हम जेल नहीं जायेंगे। किन्तु मुझे भरोसा है कि वीरताके लिए कटिबद्ध भारतीय खूराकके डरसे कुछ पीछे हटनेवाले नहीं हैं। भूख, प्यास, सरदी, गरमी यह सभी कुछ सहन करना जरूरी है। एक बड़ा संघर्ष चल रहा है। उसमें सोनेके लिए फूलकी सेज अथवा खानेके लिए व्यंजनोंकी आशा नहीं करनी चाहिए। शत्रुसे मेहरबानी कैसी? उसकी नाराजी हमें हितकारक माननी है।

सोराबजी अडाजानिया

श्री सोराबजीको बधाई देनेके लिए बहुत-से लोग आतुर जान पड़ते हैं, इसलिए वे उनका जेलका पता माँगते हैं। पता तो जोहानिसबर्ग, फोर्ट है, किन्तु उन्हें पत्र अथवा कोई दूसरी वस्तु मिलेगी नहीं। उनके छूटनेके बाद यदि कोई कुछ भेजना चाहे, तो बॉक्स संख्या ६५२२ के पतेपर भेज सकता है। मेरी सलाह है कि सभी उनके आत्मीयोंके नाम मुबारकबादके पत्र भेजें। उनकी पत्नीका नाम कुँवरबाई सोराबजी है। उनके भाईका नाम है श्री कावसजी शापुरजी और बहनका नाम है माणकबाई शापुरजी। पता है, श्री पालनजी एदलजी प्लम्बरका मकान, खेतवाड़ी, छठी गली, बम्बई।

क्रीड़ापत्र 'स्टार' में व्यंग्य-चित्र

यहाँसे 'स्पोटिंग स्टार' नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित होता है। उसमें संघर्षसे सम्बन्धित एक चित्र दिया गया है। एक कोनेमें लिखा हुआ है कि "जे० बी० का जेल, सुन्दर स्वास्थ्यप्रद उपाहारगृह "। उसके नीचे कुछ भारतीयोंके चित्र हैं। जेलका दरवाजा बनाया है और उसके नीचे लिखा है कि "श्री गांधीने मजिस्ट्रेटसे कैदियोंकी तन्दुरुस्तीके ध्यानसे अधिकसे-अधिक कारावासकी याचना की " । [२]

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-८-१९०८
 
  1. देखिए "पत्र: जेल-निदेशकको", पृष्ठ ३९२।
  2. देखिए "हरिलाल गांधी तथा अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ ४०१-०२।