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२५९. स्टैंडर्टनके बहादुर भारतीय[१]

स्टैंडर्टनके १३ व्यापारी अपनी प्रतिष्ठा, अपनी प्रतिज्ञा और अपने समाजके लिए १४ दिनोंकी सख्त सजा भोगने जेल गये। इसके लिए हम उन्हें बधाई देते हैं। स्टैंडर्टनके भारतीयोंके लिए यह गौरवकी बात है। यह मामला अबतक जो मामले हुए, उनसे अलग तरहका है। यह सजा भी ज्यादा सख्त मानी जायेगी। इस द्वितीय संघर्षमें एक साथ १३ व्यक्तियोंके पकड़े जाने का यह उदाहरण स्टैंडर्टनमें ही देखा गया है। स्टैंडर्टनने जैसा जोर दिखाया है, वैसा ही जोर यदि सभी भारतीय दिखायें, तो छुटकारा होनेमें वक्त नहीं लगेगा। प्रत्येक भारतीयको याद रखना चाहिए कि ऐसे तमाम लोगोंको जेल भेजनेके बाद यदि भारतीय समाज बैठा रहे, अथवा सरकारकी शरणमें चला जाये, तो उसे बड़ा कलंक और जो जेल गये हैं, उनका अभिशाप लगेगा।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-८-१९०८

२६०. नेटालका संघर्ष[२]

नेटालका परवाना कानून भयंकर है। भारतीय समाजको इस सम्बन्धमें तुरन्त उपाय करना बहुत जरूरी है। यह मानने का कोई कारण नहीं है कि इंग्लैंडकी सरकार उस कानूनको मंजूर कर लेगी। फिर भी "सच्चे नर सदा सुखी" इस कहावतके अनुसार यदि सुखी रहना हो, तो हमें आजसे सचेत हो जाना चाहिए। सम्भव है, इस बार कानून पास न हो, फिर भी उसका प्रभाव रह जायेगा। श्री टेलरने कहा है कि यदि विधेयक एक बार अस्वीकृत हो जायेगा, तो दूसरी बार विलायत भेजा जायेगा और जबतक मंजूर न होगा, तबतक यह प्रक्रिया जारी रहेगी। यदि परिस्थिति ऐसी हो, तो उसका एक ही इलाज है और वह है सत्याग्रहका युद्ध। प्रतिवर्ष परवानोंकी संख्या छीजती चली जाती है, यह सभी जानते हैं। यदि ऐसी परिस्थितिमें भारतीय शक्ति न लगायें, तो वे सुखसे नहीं रह सकते। इंग्लैंडकी सरकारका मुँह ताकते हुए बैठे रहना काफी नहीं है। इंग्लैंडकी सरकारके आगे दरख्वास्तका एक ही रास्ता है, वह है सत्याग्रह। इसके बाद प्रार्थनापत्र आदि हो सकता है। भारतीयोंमें इतनी हिम्मत है या नहीं, यह देखनेका समय अब आ रहा है। हम आशा करते हैं कि भारतीय व्यापारी उसकी तैयारी करेंगे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-८-१९०८
 
  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४२०।
  2. देखिए "नेटालके विधेयक", और "नेटालके नये कानून", पृष्ठ २२९ और २३०-३१।