पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/४६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२६१. पत्र: 'इंडियन ओपिनियन' को[१]

सम्पादक
'इंडियन ओपिनियन'
महोदय,

कुछ स्थानोंसे यह पूछा गया है कि अपने पुत्र हरिलालको जेल भेजनेमें मेरा क्या हेतु था।[२] इस विषयमें कुछ स्पष्टीकरण नीचे दे रहा हूँ:

(१) मैंने भारतीय समाजके सभी लोगोंको फेरी करनेकी सलाह दी है। मेरा खयाल है कि वकालतकी सनदके कारणमें उसमें भाग नहीं ले सकता। इसलिए मैंने विचार किया कि यदि मैं अपने लड़केको फेरी लगाने की सलाह दूँ, तो ठीक होगा। मैं जो-कुछ नहीं कर सकता, दूसरोंसे उसे करनेके लिए कहते हुए हिचकता हूँ। मैं ऐसा मानता हूँ कि यदि मेरा लड़का मेरी मर्जीसे कुछ करे, तो वह मेरे करनेके बराबर गिना जा सकता है।

(२) हरिलालको जो शिक्षा लेनी चाहिए उसका एक भाग है, अपने देशके लिए जेल जाना। यह उस शिक्षाका एक योग्य अवसर माना जा सकता है।

(३) मैं हमेशा यह कहता आया हूँ कि जो सत्याग्रहको ठीक रूपसे समझ सकता है, उसके लिए सत्याग्रह आसान है। मैं गिरफ्तार लोगोंकी तरफसे जो वकालत करने जाता हूँ, वह वास्तवमें बचाव नहीं है; मैं तो वहाँ उपस्थित रहकर उन्हें जेल भेजा करता हूँ। यदि किसीमें स्वयं सच्ची हिम्मत हो, तो मुझे अदालत जाना ही न पड़े। अपने लड़केके ऊपर ही इस बातका पहला प्रयोग करना मुझे ठीक लगा। इसलिए फोक्सरस्टमें उसके लिए कोई प्रबन्ध नहीं किया और उसे उसकी हिम्मतपर ही छोड़ दिया। जोहानिसबर्गमें वह दूसरे लोगोंके साथ था, इसलिए मैं अदालतमें गया। किन्तु उसके तथा उसके साथियोंके लिए मैंने अधिकसे-अधिक दिनोंकी जेल माँगी। उन्हें अधिक सजा नहीं मिली, यह उनकी कम-नसीबी थी।

(४) मैंने कई बार सलाह दी है कि किसीको भी फोक्सरस्ट पहुँचकर अँगूठेकी छाप नहीं देनी चाहिए। लोग उस सलाहके अनुसार नहीं चले। मैंने जोर नहीं दिया, किन्तु अब जोर देनेका समय आ गया है। अब फोक्सरस्टमें खूनी कानूनके अनुसार अँगूठोंके निशान माँगे जा रहे हैं; इसलिए अँगूठोंके निशान नहीं देने चाहिए। मुझे ऐसा लगा कि यह काम भी हरिलालकी मारफत सहज ही हो सकता है।

मैं चाहता हूँ कि हरिलालने जैसा किया है वैसा ही सब भारतीय करें। हरिलाल बालक कहा जा सकता है। उसे तो अपने पिताकी सलाह मान्य करनेके लिए भी ऊपरके मुताबिक करना चाहिए। इसी प्रकार हरएक भारतीयको अपनी ही हिम्मतसे ऐसा करना

 
  1. यह इंडियन ओपिनियनमें "अपने पुत्रको मैंने जेल क्यों भेजा: श्री गांधीका स्पष्टीकरण" शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था।
  2. देखिए "हरिलाल गांधी तथा अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ ४०१-०२।