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पत्र: 'ट्रान्सवाल लीडर' को

चाहिए। वे ऐसा करें, ऐसी मेरी इच्छा है। ऐसा करनेमें ही सत्याग्रहकी पूर्ण विजय समझनी चाहिए। मैं फिर कहता हूँ कि:

(१) जो जेल जानेके लिए तैयार हों, उन्हें वकील अथवा मेरे ऊपर निर्भर न रहकर जेल जाना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैंने कानूनके संघर्षमें गिरफ्तार भारतीय सत्याग्रहियोंके मुफ्त बचाव करनेकी जो बात लिखी थी, उसे मैं वापस ले रहा हूँ। जहाँ मेरी जरूरत महसूस होगी, मैं वहाँ पहुँचूँगा। किन्तु अच्छा तो यह है कि बिना वकीलके सजा हो और लोग उसे भोगनेके लिए सीधे जेल जायें।

(२) छोटे-बड़े भारतीयोंको बिना किसी अपवादके देशके लिए जेल जाना चाहिए।

(३) ट्रान्सवालमें प्रवेश करते हुए कोई भी भारतीय अँगूठा अथवा अँगुलियोंके निशान न दे। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ेगा। जेल भोग लें, किन्तु कानूनके मुताबिक अँगूठा अथवा अँगुलियोंके निशान अथवा हस्ताक्षर जैसी कोई चीज न दी जाये।

मैं हूँ सत्याग्रही,
मोहनदास करमचन्द गांधी

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-८-१९०८

२६२. पत्र: 'ट्रान्सवाल लीडर' को[१]

[ जोहानिसबर्ग ]
अगस्त ८, १९०८

[ सम्पादक
'ट्रान्सवाल लीडर' ]
महोदय,

क्या मैं आपके स्तम्भों द्वारा एशियाई प्रश्नका एक पहलू आपके उन पाठकोंके सामने रख सकता हूँ जो ट्रान्सवालके समस्त निवासियोंके प्रति न्याय किये जानेमें दिलचस्पी रखते हैं?[२]

मैंने आपके आजके पत्रमें प्रकाशित जाली प्रमाणपत्रोंसे सम्बन्धित दो भारतीय मामलोंका कथित संक्षिप्त विवरण पढ़ा है। उनमेंसे एक व्यक्ति सरकारी गवाह बनकर अपनी मुक्ति पा गया। जिसके विरुद्ध वह सरकारी गवाह बना था, वह आदमी भी छूट गया है। लोग जानते

 
  1. यह १५-८-१९०८ के इंडियन ओपिनियनमें "ट्रान्सवालमें भारतीयोंका संघर्ष" शीर्षकसे उद्धत किया गया था।
  2. इस पत्रपर ट्रान्सवाल लीडरने इस प्रकार सम्पादकीय टिप्पणी दी थी: "उसके एक अंशकी ओर हम न केवल सम्बन्धित मन्त्री और अधिकारियोंका, बल्कि संसद-सदस्यों और सदाशयी और न्याय प्रिय लोगोंका ध्यान विशेष रूपसे आकृष्ट करना चाहते हैं। हमारा तात्पर्य उस भागसे नहीं है जिसमें एक और एशियाई जाली अनुमतिपत्र बनानेवालों और उनके मित्रों और दूसरी ओर अधिकतर प्रतिष्ठित एशियाइयोंके साथ किये गये बहुत भिन्न व्यवहारका जिक्र है, यद्यपि श्री गांधीके उद्गार इस विषयमें यथेष्ट रूपसे तीखे हैं---विशेष रूपसे उनके सत्यके कारण। हमारा आशय उनके पत्रके उस भागसे है जिसमें वे जोर देकर कहते हैं कि जो एशियाई वर्तमान मूर्खतापूर्ण शासनके अन्तर्गत जेल भेजे जाते हैं वे अंशत: भूखे रखे जाते हैं क्योंकि उन्हें उस प्रकारका भोजन नहीं