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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं कि उनमें से एक स्वयं अपने कथनानुसार किस हदतक जाली कारसाजीमें फँसा हुआ था। समाचारपत्रोंके मुताबिक दूसरेके विरुद्ध गवाही निस्सन्देह इतनी कमजोर थी कि उसे सजा नहीं दी जा सकी। इस तरह जो लोग जालसाजीसे सम्बन्धित हैं, वे स्वच्छन्द घूम रहे हैं। एशियाई कानून संशोधन अधिनियम न तो उन्हें छूता है, और न उसने छुआ। उसके अन्तर्गत उनपर आरोप भी नहीं लगाया गया था और मैं स्पष्ट रूपसे स्वीकार करता हूँ कि कोई एशियाई अधिनियम ऐसे मामलोंसे संव्यवहार नहीं कर सकता। जहाँ कहीं भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रतापर रोक लगती है, वहाँ ऐसे लोग मिल जायेंगे जो ऐसे प्रतिबन्धोंसे बचनेके लिए तरह तरहके उपायोंको बरतनेके लिए काफी तत्पर रहते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीय ही केवल ऐसे लोग नहीं हैं जो इस कारसाजीसे सम्बन्ध रखते हैं। यूरोपीयोंके बारेमें भी उससे सम्बन्धित रहनेका आरोप लगाया जाता है।

अब आपके पाठक तस्वीरका दूसरा रुख देखें। जो भारतीय उपनिवेशमें खुल्लमखुल्ला आये हैं, जिन्होंने अपना युद्ध-पूर्व निवास सिद्ध कर दिया है, जो हमेशा कानूनके मुताबिक चले हैं और जिन्होंने हालमें ऐसे लोगोंकी पूरी तरह शिनाख्त करके सरकारको सहायता पहुँचाई है और जिसे सबने माना है, उन्हें लॉर्ड मिलनरके ऐतिहासिक शब्दोंमें चारों ओरसे 'कोंचा' जा रहा है और तंग किया जा रहा है। निर्दोष भारतीय ---बहुत-से उदाहरणोंमें ऐसे भारतीय जो अपने समाजके सर्वोच्च तबकेसे सम्बन्ध रखते हैं---कैदमें डाले जा रहे हैं; इसलिए नहीं कि उन्होंने कोई जघन्य अपराध किया है, बल्कि इसलिए कि उनकी आत्मा उस कानूनको स्वीकार नहीं करती, जिसे वे क्रोधोत्पादक और अपमानजनक मानते हैं। आज स्टैंडर्टन अपने प्रमुख भारतीय दूकानदारोंसे लगभग विहीन है क्योंकि वे १४ दिनोंका कठोर कारावास भुगत रहे हैं।

मानो इतनी परेशानी काफी नहीं थी, इसलिए इन भारतीय कैदियोंको अभीतक भोजनके विषयमें कोई राहत नहीं दी गई है। यूरोपीय कैदियोंको वहीं भोजन मिलता है जिसके वे साधारणतः आदी होते हैं; केप ब्वायज यूरोपीय भोजन पाते हैं; वतनियोंको वही भोजन मिलता है जिसकी उन्हें आदत है; भारतीय कैदियोंको लगभग वतनियोंका भोजन मिल रहा है और इसलिए वे आधे भूखे रहते हैं। उन्हें हर रोज नाश्तेमें मकईका दलिया मिलता है और हफ्तेमें तीन बार शामके भोजनमें भी मकईका दलिया दिया जाता


दिया जाता जिसकी उन्हें आदत है और जो उन्हें दिया जाता है उसे वे खा नहीं सकते। ये लोग राजनीतिक कैदी हैं। यदि इनसे सख्त मेहनत ली जाती है या इन्हें जेलका वस्त्र पहनाया जाता है तो यह अन्याय है। यह निन्दनीय रूप से अन्याय है यदि खुराकके बारेमें उनके साथ वैसा व्यवहार किया जाता है जैसा कि श्री गांधी कहते हैं। हम समझते थे कि जो देश अपने आपको सभ्य घोषित करते हैं उन्होंने उत्पीड़नका अन्त कर दिया है। हम इसके अपवाद प्रतीत होते हैं। निश्चय ही जेलके स्वास्थ्य अधिकारी कैदियोंके लिए उसी भोजनकी सिफारिश करते हैं जो वे खा सकते हैं। क्या स्वास्थ्य अधिकारियोंकी हिदायतोंका पालन किया जाता है? क्योंकि जेल विभागसे सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्तिका, उपनिवेश-मन्त्रीसे लेकर नीचेके समस्त कर्मचारियों तक, यह कर्तव्य है कि उनका पालन करें। क्या स्वास्थ्य अधिकारियोंके विचारोंकी उपेक्षा की जाती है? ऐसी बात नहीं कि पकानेकी कोई कठिनाइयाँ हों। कोई भोजन इतनी सरलतासे नहीं तैयार किया जा सकता जितना कि चावल।

यदि श्री गांधीके आरोप अच्छी बुनियादपर हैं तो हम जो कुछ कर रहे हैं वह तुर्कीके किसी प्रान्तके लिए भी लज्जाजनक है, ब्रिटिश साम्राज्यीय राज्योंकी तो बात ही क्या है!"