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हरिलाल गांधीका मुकदमा--२

है। मैं जानता हूँ कि मकईका दलिया उनके लिए बहुत अच्छी चीज है जिन्हें इसकी आद है अथवा जो बहुत दिनोंतक उसे खाकर उसकी आदत डाल सकते हैं। दुर्भाग्यवश मेरे देशवासी मकईका दलिया नहीं खाते। फल यह है कि ट्रान्सवालकी जेलोंमें उन्हें बहुत हद तक भूखों मरना पड़ता है। अधिकारियोंसे राहतके लिए कहा गया है[१], किन्तु लिखनेके समय तक कोई उत्तर नहीं मिला है। यह अनुचित भले ही हो किन्तु मेरे देशवासी इसका यही अर्थ निकालते हैं कि भारतीय हैरान होकर झुक जायें, इस खयालसे राहत नहीं दी जा रही है। यदि ऐसा हो, तो उन्हें [ अधिकारियोंको ] सचेत हो जाना चाहिए कि वे कहीं सरकार और उसके कानूनोंके खिलाफ भारतीयोंको कड़ेसे-कड़ा विरोध करनेके लिए न भड़का दें।

एशियाई इकरारनामेके बारेमें अपना फर्ज अदा कर चुकनेके बाद अब यह कोशिश कर रहे हैं कि जनरल स्मट्स अपना फर्ज अदा करें। 'ट्रान्सवाल लीडर' के अनुसार इसको उन्होंने सार्वजनिक रूपसे इस तरहसे घोषित किया था: "उन्होंने उनसे ( एशियाइयोंसे ) कहा था कि जबतक देशमें एक भी एशियाई ऐसा बचेगा जिसने अपना पंजीयन न कराया हो, तबतक कानून रद नहीं किया जायेगा।"[२] और फिर, "जबतक देशका प्रत्येक भारतीय पंजीकृत नहीं हो जाता, कानून रद नहीं किया जायेगा।" यह स्वीकार कर लिया गया है कि जिन एशियाइयोंको स्वेच्छया पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र देनेका अवसर मिला, वे वैसा कर चुके हैं। अब एशियाई पूछते हैं, "फिर कानून अभीतक रद क्यों नहीं किया गया? और बिलकुल असम्भव परिस्थितियोंमें अधिनियमको रद करनेकी बात क्यों कही गई थी?"

आपका, आदि,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रान्सवाल लीडर, १०-८-१९०८

२६३. हरिलाल गांधीका मुकदमा--२[३]

[ जोहानिसबर्ग
अगस्त १०, १९०८ ]

तीसरे पहर "बी" अदालतमें भारतीयोंकी असाधारण भीड़ श्री हरिलाल मोहनदास गांधी मामलेको सुननेके लिए एकत्र हुई थी। श्री हरिलाल श्री मो० क० गांधीके पुत्र हैं, अवस्था बीस वर्ष है, और उन्हें विद्यार्थी बताया गया है, तथा पंजीयनका प्रमाणपत्र नहीं होनेके कारण उन्हें श्री एच० एच० जॉर्डनके समक्ष एशियाई संशोधन अधिनियमका उल्लंघन करनेके अपराधमें पेश किया गया था।

 
  1. देखिए "पत्र: जेल निदेशकको", पृष्ठ ३९२।
  2. स्मट्सने जून ६, १९०८ को रिचमंडमें दिये गये अपने भाषणमें ऐसा कहा था; देखिए परिशिष्ट ८।
  3. इससे पहले हरिलाल गांधीपर जुलाई २८, १९०८ को मुकदमा चलाया गया था। देखिए "हरिलाल गांधी तथा अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ ४०१-०२।