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भाषण:सार्वजनिक सभामें

करा लेंगे, तब वे अधिनियम रद कर देंगे।[१] इस मामलेमें उन्होंने ( श्री गांधीने ) एक घटनाका उल्लेख करना चाहा। [ उन्होंने बताया कि ] जब मैं श्री डोकके यहाँ बीमार पड़ा हुआ था, तब एशियाई पंजीयक मेरे पास आया था और उसने कहा कि ऐसा जान पड़ता है कि चीनी और कुछ भारतीय सरकारकी सदाशयताके प्रति सन्दिग्ध हैं और इसलिए वे आगे नहीं बढ़ते। वे वादेकी पुष्टिमें कुछ लिखित बात चाहते हैं। तब वहाँ उसी समय एक सूचनाका मसविदा बनाया गया कि यदि एशियाई समुदाय अपने समझौते की शर्ते पूरी करेगा, तो अगले सत्रमें अधिनियम रद कर दिया जायेगा। यह सूचना सभी भारतीय भाषाओंमें और चीनी भाषामें भी प्रकाशित की जानेवाली थी।

"सौभाग्यवश"

दुर्भाग्यवश--नहीं, मैं कहूँगा सौभाग्यवश, क्योंकि अब हम यह जानते हैं कि हम किनसे निपट रहे हैं। तो सौभाग्यवश, अगले दिन श्री चैमने यह समाचार लाये कि सभी एशियाई [पंजीयन करानेके लिए] तैयार हैं, और चीनियोंने अपनी आपत्तियाँ वापस ले ली हैं। उन्होंने [जनरल स्मट्सने] पूछा कि क्या मैं (श्री गांधी) अब भी उक्त नोटिसको प्रकाशित कराना जरूरी समझता हूँ। उस समय हमारे सामने श्री स्मट्स या श्री चैमनेकी ईमानदारीपर सन्देह करनेका कोई कारण नहीं था और [इसीलिए] मैंने जवाब दिया कि नोटिस प्रकाशित करनेकी कोई वजह नहीं है। मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा कि जब श्री स्मट्सने रिचमंडमें वक्तव्य दिया था उस समय उनके दिमागमें एशियाइयोंके सामने ऐसी कोई कठिनाई आनेकी बात रही होगी, जिसका जिक्र श्री चैमनेने मुझसे किया और यही कारण था कि उन्होंने उक्त स्पष्टीकरण दिया था। आज हम देखते हैं कि श्री स्मट्सने कुछ शर्तोंपर[२] अधिनियम रद करनेका प्रस्ताव किया है, जिन्हें हम स्वीकार नहीं कर सकते। ये ऐसी शर्तें हैं जो हमपर उस समय नहीं थोपी गई थीं जब हमने स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र लेना स्वीकार किया था।

शुद्ध प्रशासन और साम्राज्यकी शान्ति

एशियाई लोग अपने ही विरुद्ध सरकारकी सहायता कर रहे हैं, अपना वचन पूरा करनेमें श्री स्मट्सकी सहायता कर रहे हैं, और उपनिवेशके अन्दर प्रशासनकी शुद्धता तथा साम्राज्यके अन्दर शान्ति कायम रख रहे हैं। यदि हम देखें कि दक्षिण आफ्रिकी सरकारके कर्णधार राजनयिकोंमें मामूली ईमानदारी भी नहीं है और जब उनको सुविधाजनक लगे तभी वे अपने वादोंसे मुकर जाते हैं और वादा-खिलाफी करते हैं तो हम ब्रिटिश भारतीयोंको चाहिए कि उन्हें अपने वादे पूरे करनेपर मजबूर करें। ऐसा करके हम न केवल उपनिवेशकी, बल्कि पूरे साम्राज्यकी महत्वपूर्ण सेवा करेंगे। इसलिए [आज] जब हमारे सामने कारावास भोगने, करीब-करीब भूखों मरने और जेलमें नंगे पैरों चलनेकी सम्भावना खड़ी है तब हम विचलित नहीं हुए हैं। अपना माल जब्त होनेकी सम्भावनाके सामने भी हम अविचल हैं। मैं तो उसे संगठित राहजनी---कानून-समर्थित डाका---कहूँगा।

 
  1. देखिए परिशिष्ट ८।
  2. शर्तोंके लिए देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ३०८।