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भट : 'ट्रान्सवाल लीडर' को

कीमती स्याही नष्ट की जा चुकी है। किन्तु यह कभी अलंघ्य कठिनाईकी बात नहीं रही। वास्तवमें अँगुलियोंके निशान स्वेच्छया दिये जाते रहे हैं।

परन्तु दसों अँगुलियोंकी छापपर बड़ी गम्भीर आपत्ति है, क्योंकि इसमें अपराधीपनकी बू आती है। ई० आर० हेनरीकी किताबके मुताबिक दसों अँगुलियोंकी छापकी जरूरत केवल अपराधियों के वर्गीकरणके लिए ही पड़ती है; भारतमें अनेक विभागोंमें अशिक्षितों से अँगूठेके निशान माँगे जाते हैं। किन्तु गतिरोध तो स्वयं एशियाई अधिनियमके कारण उत्पन्न हुआ है। आपत्तियाँ विनियमों के प्रकाशित और घोषित किये जानेके पहले उठाई गई थीं।

जब श्री गांधीसे जनरल स्मट्स द्वारा धमकियोंका उल्लेख किया जानेकी बातपर वक्तव्य देनेको कहा गया तब उन्होंने कहा कि धमकी सिवा इसके कुछ नहीं है कि जिन भारतीयोंने पंजीयन प्रमाणपत्र लिये हैं उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाये और मुझे इस बातकी बड़ी आशंका है कि ऐसा बहिष्कार रोके नहीं रुकेगा। जिन एशियाइयोंने अपना पंजीयन कराया है उन्होंने अनेक बार स्वीकार किया है कि उनसे अनुचित कार्य हुआ है। यह डरके मारे हुआ है न कि काननू के प्रति सम्मानके कारण।

जनरल स्मट्सकी यह आलोचना कि नेताओंने धोखा दिया है, दुर्भाग्यपूर्ण है। जहाँतक मुझे मालूम है किसी भी नेताने किसी भी भारतीयको नहीं बरगलाया। एशियाई कानून अनुवादित करके जनसाधारणमें बाँटा जा चुका है। बड़ी सरकार द्वारा दिये जानेवाले संरक्षणकी बात भारतीय समाजके सामने निस्सन्देह रखी गई है और जबतक बड़ी सरकार और ब्रिटिश न्यायमें मेरी आस्था बनी हुई है तबतक मैं अपने देशवासियोंके सामने उसे रखता ही रहूँगा। अलबत्ता यदि मुझे यह दिखे कि अपनी पूर्व प्रतिज्ञाओं के बावजूद सम्राट्ने सारे भारतीय समाजका सर्वथा परित्याग कर दिया है तो बात दूसरी है। जनरल स्मट्सने हमारे प्रतिष्ठित समाजको कुलियोंकी जमात कहना उचित समझा है। यह कदापि न माना जाये कि भारतीय इन बातोंको नहीं जानते अथवा उन्हें इससे चोट नहीं पहुँचती। ब्रिटिश भारतीयोंने जनरल स्मट्सके एक-एक शब्दको बड़ी उत्सुकता और आतुरताके साथ पढ़ा है और जो पढ़ नहीं पाये उन्होंने उसका अनुवाद' सुना है। यह कहना आवश्यक नहीं है कि इन शब्दोंसे उन्हें स्वभावतः क्षोभ हुआ है। जबतक वे ब्रिटिश भारतीयोंको तुच्छ गिनते हैं और, जहाँतक उनकी स्वतन्त्रता और व्यक्तिगत आवागमनका सम्बन्ध है, उन्हें ब्रिटिश प्रजाकी परिपूर्ण हैसियत देने से इनकार करते हैं, तबतक भारतीयोंको जेल अथवा देश निकालेसे ही संतोष करना होगा।

नेतागण

जनरल स्मट्सने नेताओंपर हाथ डाला, इसके लिए मैं उन्हें साधुवाद दिये बिना नहीं रह सकता। अब उन्हें स्वयं पता चल जायेगा कि भारतीय विरोध सच्चा है या झूठा। प्रश्न यह है कि क्या वे अपराधीको पा जानेके बाद न्याय करेंगे? अथवा वे अपनी जबरदस्त शक्ति उन मुट्ठीभर भारतीयोंको कुचलने में लगायेंगे जिन्होंने ट्रान्सवाल समाजके किसी भी अंशको कभी किसी प्रकारकी हानि नहीं पहुँचाई। नेताओंकी बात चली है इसलिए मुझे यहाँ इस बात से अवश्य इनकार कर देना है कि उन सबने, जो गिरफ्तार हुए हैं, आन्दोलनमें प्रमुख भाग लिया है। सर्वविदित है कि कुछने तो अधिनियमके सम्बन्धमें कभी कोई काम नहीं किया। और

१. देखिए "जनरल स्मट्सका भाषण", पृष्ठ २०-२१ ।

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