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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

जो लोग सरकारी नौकरीमें हैं उन्हें नौकरीसे बर्खास्त करनेकी धमकी देकर पंजीयन करानेपर क्यों बाध्य किया जाता है[?] मुझे यह कहते हुए गर्व होता है कि सरकारके अधिकतर भारतीय नौकरोंने, जिनमें से कुछ लम्बे अर्सेसे सरकारी नौकरीमें हैं, पंजीयन करानेके बजाय बर्खास्त होना स्वीकार किया है। किन्तु यदि यह बात सच हो कि आन्दोलनको केवल नेताओंने ही जारी रखा है, तो फिर रेलोंमें काम करनेवाले भारतीय मजदूरों तक को बर्खास्त करनेका इतना सख्त रास्ता क्यों अपनाया गया है?

'अटल' कानून

इसके बाद श्री गांधीने जनरल स्मट्सके उपसंहारात्मक शब्दोंकी ओर ध्यान आकर्षित किया और कहा कि उन्होंने एक ऐसा सिद्धान्त निरूपित किया है कि यदि उसे सामान्यतः अमलके योग्य मान लिया जाये तो उसके फलस्वरूप स्वस्थ या अस्वस्थ हर तरहके आन्दोलनकी इतिश्री हो जायेगी। जनरल स्मट्सने फरमाया है कि आन्दोलनोंसे किसी कानूनमें कोई फेरफार नहीं किया जा सकता।

सभो जमातोंको प्रभावित करनेवाले सर्वसामान्य कानूनोंका विचार न करें तो भी मैं नेटाल मताधिकार कानूनका उदाहरण पेश कर सकता हूँ, जिसे भारतीय समाजके तर्कसम्मत विरोध और तत्कालीन उपनिवेश-सचिवकी लिखापढ़ीपर बदलना पड़ा था और सो भी तब जब नेटाल स्वराज्य प्राप्त कर चुका था। नेटाल नगरपालिका अधिनियमपर अभी सम्राट्की स्वीकृति मिलनी शेष है। मेरी नम्र सम्मति में ब्रिटिश साम्राज्यका सच्चा बल इसमें है कि वह कोई सम्मानपूर्ण समझौता कर ले और अल्पसंख्यकोंकी शिकायतों और हकोंपर—विशेषतः जब वे कमजोर और प्रतिनिधित्वहीन हैं—ध्यान दे। ट्रान्सवाल नगरपालिका अध्यादेशको पेश करते समय सर रिचर्ड सॉलोमनने रंगदार लोगों द्वारा 'पास कानून' अस्वीकृत कर दिया जानेका उदाहरण दिया था। जहाँतक मुझे मालूम है वह कानून उनपर कभी लागू नहीं किया गया है।

जनरल स्मट्सके साथ भारतीय समाजके नेताओंने जो अनेक मुलाकातें कीं, उनके बारेमें आपका क्या कहना है? क्या आप किसी मंत्रीपूर्ण समझौतेपर नहीं पहुँच सके?

जहाँतक मुझे मालूम है, मुलाकातें अनेक नहीं हुईं। मुझे तो एक की ही खबर है। मैं इतना बेशक जानता हूँ कि उन्होंने ब्रिटिश भारतीयों द्वारा किये गये समझौते के हर प्रयत्नको बार-बार ठुकराया है। यह बिलकुल ठीक है कि हर बार प्रस्ताव एशियाई कानूनको रद किया जानेकी दृष्टिसे रखा जाता रहा है। भारतीयोंके लिए, जो ईश्वरमें विश्वास रखते हैं और जो अपने समक्ष प्रस्तुत सारी बातोंको जान लेनेके बाद गम्भीर प्रतिज्ञासे आबद्ध हैं, कोई अन्य मार्ग हो ही नहीं सकता।

मार्ग

क्या प्रस्तुत कठिनाई में से निकलनेका कोई सम्मानपूर्ण मार्ग नहीं है?

भारतीय सदासे अधिनियमके महत्त्वपूर्ण उद्देश्योंको पूरा करनेकी तत्परता दिखाते रहे हैं; अर्थात् उपनिवेशमें रहनेका हक रखनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंकी पूरी-पूरी शिनाख्तके लिए

१. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ३५६ ।

२. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ४३२ ।