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२६६. काजी हसन और अन्य लोगोंका मुकदमा

[ जोहानिसबर्ग
अगस्त ११, १९०८ ]

दोपहरके बादसे "सी" अदालतमें श्री क्रॉसके सम्मुख ५ अन्य भारतीयोंपर परवानेके बिना फेरी लगाने या पूछे जानेपर अपने परवाने न दिखानेके आरोपमें एवं व्यापार करनेके अपने टोकरों या पात्रोंपर अपने छपे नाम न लगानेपर भी मुकदमा चलाया गया।

श्री गांधीने अभियुक्तोंकी ओरसे पैरवी की।

सबसे पहले काजी हसनकी पेशी हुई। उन्होंने अपने आपको निर्दोष बताया और कहा कि उन्होंने अपना प्रमाणपत्र निरीक्षकको दिखा दिया था।

नगरपालिकाके परवाना निरीक्षक श्री फ्रेंचने गवाहीमें कहा कि उन्होंने अभियुक्तको बिक्रीके लिए माल लगाये हुए देखा। उन्होंने जब उनसे अपना परवाना दिखानेके लिए कहा तो उन्होंने परवाना नहीं दिखाया। बादमें चार्ज ऑफिसमें उन्होंने अपना परवाना दिखाया।

श्री गांधीने कहा कि मैं अब समझ गया कि अभियुक्तने अपने-आपको निर्दोष क्यों बताया है। उनके पास परवाना था; किन्तु जब निरीक्षकने उनसे कहा तो उन्होंने दूसरोंके साथ-साथ परवाना दिखानेसे इनकार कर दिया।

मजिस्ट्रेट: मुझे संतोष है कि उन्होंने अपना परवाना दिखा दिया है।

मजिस्ट्रेटने उनको पहले वो आरोपोंमें निर्दोष पाया, किन्तु अपनी टोकरीपर अपना छपा नाम न लगानेके सम्बन्धमें दोषी ठहराया। उनको चेतावनी दे दी गई और बरी कर दिया गया।

उसके बाद अहमद ईसपकी पेशी हुई। उन्होंने माँगे जानेपर अपना परवाना न दिखाने-सम्बन्धी अपना दोष स्वीकार किया।

श्री गांधीने कहा कि प्रत्यक्ष है कि अभियुक्तका परवाना किन्हीं अच्छे हाथोंमें है।

मजिस्ट्रेट: श्री गांधी, क्या वे हाथ आपके हैं?

श्री गांधी: मुझे डर तो ऐसा ही है, श्रीमन्!

अभियुक्तको १ पौंड जुर्मानेकी या सात दिनकी कड़ी कैदकी सजा दे दी गई।

इसके बाद फकीरी नामक एक फेरीवालेकी पेशी हुई उसको भी १ पौंड जुर्मानेकी या सात दिनकी कड़ी कैदकी सजा दी गई।

सबसे पीछे इब्राहीम माराविन और इस्माइल अहमद पेश किये गये।

नगरपालिकाके परवाना निरीक्षक श्री बैरेटने गवाही देते हुए कहा कि मैं यह जिक्र करना चाहता हूँ कि श्री गांधीके पास फेरीवालोंके दो-तीन सौ परवाने हैं।

श्री गांधी: मैंने यह बात आज प्रातः गवाहीमें बता दी थी।[१]

 
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