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मूलजीभाई जी० पटेलका मुकदमा

गवाह कहा कि जब फेरीवालोंको अपने परवाने दिखानेके लिए कहा गया तो उन्होंने बताया कि उनके परवाने श्री गांधी अधिकारमें हैं।

मजिस्ट्रेट: यदि वे अपने परवाने श्री गांधीको दे देते हैं तो इसके लिए श्री गांधीको दोष नहीं दिया जा सकता।

श्री गांधीने कहा कि फेरीवालोंने अपने परवाने इसलिए दे दिये हैं कि उनका खयाल है कि उन्हें ऐसे परवानोंके प्रयोगका कोई अधिकार नहीं है जो दूसरोंको नहीं मिल सकते। जब सरकारने परवाने देनेके सम्बन्धमें गुप्त निर्देश निकाले तब वे परवानेदारोंके पास थे और चूँकि दूसरे भारतीयोंको परवाने नहीं मिल सके इसलिए जिन लोगोंके पास वे थे, उन्होंने उनको ब्रिटिश भारतीय संघको सौंप दिया।

अभियुक्तोंपर १-१ पौंड जुर्माना किया गया और जुर्माना न देनेपर विकल्पके रूपमें सात-सात दिनकी सख्त कैदकी सजा रखी गई।

उन्होंने जेल जाना पसन्द किया।

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रान्सवाल लीडर, १२-८-१९०८

२६७. मूलजीभाई जी० पटेलका मुकदमा--२

[ जोहानिसबर्ग
अगस्त १२, १९०८]

कल [१२ अगस्त, १९०८ को] श्री एच० एच० जॉर्डनके सम्मुख "बी" न्यायालयमें एक भारतीय, मूलजी गिरधरलाल पटेलपर इस आरोपमें मुकदमा चलाया गया कि वे न्यायालय द्वारा उपनिवेशसे जानेकी आज्ञा देनेपर उपनिवेशसे नहीं गये। अभियुक्तपर इसी न्यायालयमें लगभग एक सप्ताह पहले पंजीयन प्रमाणपत्र न दिखानेके आरोपमें मुकदमा चलाया गया था और उनको सात दिनके भीतर उपनिवेशसे चले जानेकी आज्ञा दी गई थी।[१]

श्री कैमर अभियोक्ता-पक्षके वकील थे और श्री गांधी बचाव पक्षके। अभियुक्तने अपने आपको निर्दोष बताया।

अधीक्षक वरनॉनने गवाहीमें कहा कि उन्होंने अभियुक्तको, हुक्म देनेपर भी उपनिवेशसे न जाने और पंजीयन न करानेके आरोपमें, कल प्रातः ६ बजकर १० मिनटपर गिरफ्तार किया था। श्री गांधीके प्रश्नका उत्तर देते हुए गवाहने कहा कि अभियुक्तको उपनिवेशमें रहनेका कोई अधिकार नहीं है।

श्री गांधी: आप कहते हैं कि उनको उपनिवेशमें रहने का कोई अधिकार नहीं है। क्या ऐसी बात है?

[ वरनॉन: ] हाँ।

[ गांधीजी ] क्या उनके पास शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत अनुमतिपत्र नहीं हैं?

 
  1. देखिए "मूलजीभाई जी० पटेलका मुकदमा---१", पृष्ठ ४१६।