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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

[ वरनॉन: ] है।

[ गांधीजी: ] क्या इस अनुमतिपत्रके होनेसे किसीको देशमें प्रवेश करने और रहने का अधिकार नहीं मिलता?

[ वरनॉन:] मिलता है, किन्तु शान्ति-रक्षा अध्यादेश अब रद कर दिया गया है।

[ गांधीजी: ] क्या आपका तात्पर्य यह है कि शान्ति-रक्षा अध्यादेशके रद होनेसे उसके अन्तर्गत जारी किये गये अनुमतिपत्र रद हो गये?

[ वरनॉन: ] हाँ।

[ गांधीजी: ] तब क्या आप यह मानते हैं कि शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत दिये गये सब अनुमतिपत्र अवैध हो गये हैं?

[ वरनॉन: ] हाँ।

[ गांधीजी: ] मुझे भय है कि न्यायालय आपके तर्कको स्वीकार न करेगा।

अभियुक्तको एक मासकी कड़ी कैदको सजा दे दी गई।

अभियुक्त ट्रान्सवालमें लगभग १० वर्ष से रहते हैं और शिक्षित व्यक्ति हैं; यहाँ उनका खासा असर है---मुख्यतः, बम्बईके हिन्दुओंके एक वर्ग में। उनके पास शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत जारी किया गया प्रमाणपत्र है जो लॉर्ड मिलनरके साथ सम्पन्न समझौतेके अनुसार दिया गया था।[१]

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रान्सवाल लीडर, १३-८-१९०८

२६८. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

सोमवार [ अगस्त १०, १९०८ ]

नायडू छूटे

आज सवेरे ९ बजे श्री थम्बी नायडू जेलसे छूट गये। उन्हें लेनेके लिए श्री ईसप मियाँ, श्री इमाम अब्दुल कादिर बावजीर, श्री कुवाड़िया, श्री कुनके, कुछ चीनी और श्री गांधी आदि गये थे। श्री नायडूका शरीर कमजोर हो गया है। लेकिन उनका साहस दूना हो गया है और वे चौथी बार जेल जानेकी फिक्रमें हैं।

श्रीमती नायडूसे तुरन्त मिलना चाहिए यह सोचकर श्री नायडू और उनकी अगवानी करनेके लिए आये सभी भारतीय उनके घर गये। वहाँ श्री ईसप मियाँ तथा अन्य सज्जन कुछ बोले और श्री नायडूने जवाब दिया। उसके बाद बैठक समाप्त हो गई।

श्रीमती नायडूकी हालत ठीक है। बीचमें दो दिन उन्हें ज्वर आ गया था। आज शामको तमिल समाजकी ओरसे श्री नायडूके सम्मानमें सभा होने वाली है। उनका सार्वजनिक सम्मान करनेकी भी कोशिश की जा रही है।

 
  1. इंडियन ओपिनियन (१५-८-१९०८) में प्रकाशित रिपोर्टमें कहा गया है: "पटेल-जैसी स्थितिमें २०० से अधिक भारतीय हैं, जो ट्रान्सवालके युद्धसे पहले निवासी हैं और जिनके पास अनुमतिपत्र और पंजीयन प्रमाणपत्र हैं।"