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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी



हरिलाल गांधीका मामला

श्री हरिलाल गांधी आज लपेटमें आ गये हैं। पुलिसने उन्हें ट्रान्सवालमें बिना पंजीयनके रहनेके अपराधमें पकड़ लिया। २ बजे मुकदमा हुआ।[१] उपनिवेश छोड़नेके लिए साधारणतः ७ दिनकी मोहलत दी जाती है। श्री गांधीने उसके बदले २४ घंटेकी मोहलत माँगी; क्योंकि उन्हें कोई भी काम नहीं करना था और वे सीधे जेल जाना चाहते थे; किन्तु मजिस्ट्रेटने सात दिनकी मोहलत दी। मुझे उम्मीद है कि अब सात दिन बाद वे जेलमें सख्त सजा काटते हुए दीख पड़ेंगे। जो बुद्धिपूर्वक इस तरह जेल जाते हैं, वे वास्तवमें शिक्षित हैं। छुटपनसे ही अपने बच्चोंको दुःख सहन करनेकी शिक्षा देना बड़ा शिक्षण है।

जॉर्ज गॉडफ्रे

जिन श्री गॉडफ्रे महोदयने अभी-अभी वकालतका धन्धा शुरू किया है, उन्होंने समाजके मुकदमेकी पैरवी मुफ्त करनेकी घोषणा की है। यह कदम बहुत प्रशंसनीय है और कहा जा सकता है कि उन्होंने अपनी शिक्षाका सच्चा उपयोग किया है।

हॉस्केनकी टीका

श्री हॉस्केनने खबर दी है कि प्रगतिवादी दल [ एशियाई ] कानून रद करने का विरोध करेगा। अब इस समाचारसे कोई भी घबराता नहीं। जनवरीमें उक्त दल तथा अन्य सभी हमारे विरुद्ध थे;[२] फिर भी हम लड़े और जीते। वैसा ही आज भी हो तो कुछ नई बात नहीं होगी। जब भारतीय अपने वास्तविक रूपमें प्रकट होंगे, तब सारे विरोधी फीके पड़ जायेंगे। जिस प्रकार सूरजके उजालेसे अन्धकार त्रस्त होकर एक कोनेमें जा छुपता है, उसी प्रकार भारतीय सत्य-रूपी सूरजके सामने स्मट्सकी धोखाधड़ी और प्रगतिवादी दलका विरोध भी सिमटकर रह जायेगा। भारतीयोंका सत्य निखरना चाहिए।

स्टेंटका भाषण

श्री स्टेंट प्रगतिवादी दलके हैं और 'प्रिटोरिया न्यूज' के सम्पादक हैं; उन्होंने प्रिटोरियामें निम्नलिखित भाषण दिया है:

जनरल स्मट्सने एशियाई प्रश्नपर उपनिवेशका अपमान किया है। एशियाई कानून अन्यायपूर्ण है। उन्होंने उसे दाखिल किया। उपनिवेशके लोग चाहे इसे मानें या न मानें, फिर भी इतना तो जरूर कबूल करेंगे कि उन्होंने उस कानूनके अमलमें बहुत-सी भूलें की हैं। एक ओर उन्होंने गोरोंको भारतीयोंके विरुद्ध उकसाया, दूसरी ओर उन्होंने भारतीयोंके साथ समझौतेकी बातचीत चलाई। एक ओर उन्होंने भारतीयोंको धमकी दी, और दूसरी ओर भारतीयोंकी सारी शर्तें स्वीकार कर लीं।

अब वे श्री गांधीके विरोधमें लड़ रहे हैं। उन्होंने कुछ नये आधार निकाले हैं। उनमें भी वे हारेंगे। एशियाई सदा निष्क्रिय प्रतिरोध ही नहीं करेंगे, वे आगे भी बढ़ेंगे

 
  1. देखिए "हरिलाल गांधीका मुकदमा---२", पृष्ठ ४२९-३०।
  2. समझौते तथा स्वेच्छया पंजीयनके प्रति प्रगतिवादी दलके रुखके लिए देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी " (पृष्ठ ६८-७०) में दिया गया स्मट्स-फेरार पत्र-व्यवहारका सारांश। परन्तु उस समय गांधीजीका निष्कर्ष यह या कि "प्रगतिवादी दल हमारे विरुद्ध नहीं है"।